भगवान महावीर का जन्म
पुनर्भवों की साधना का परिणाम
जैन ग्रंथों में भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन मिलता है। इतिहास इसकी पुष्टि नहीं करता। प्रश्न उपस्थित होता है कि इस प्रकार के पौराणिक विवरणों को प्रस्तुत करने की क्या सार्थकता है? मेरी दृष्टि में इसके प्रस्तुतीकरण का महत्व दो कारणों से है। एक तो इससे जैन धर्म की तत्संबंधी विशिष्ट मान्यताओं की जानकारी प्राप्त होती है, दूसरे इससे पाठक को यह सहज प्रतीति हो सकेगी कि किस प्रकार प्राणी उत्तरोत्तर विकास कर आत्मसाक्षात्कार कर, परम पद की प्राप्ति कर सकता है। पूर्व जन्मों में महावीर एक संसारी जीव मात्र थ। वे न तो 'अमरत्व के अधीश्वर' थे और न सच्चिदानंद स्वरूप, अरूप, अव्यक्त, अनाम, अनंत, निर्विकल्प, निरवयव तथा देशकाल परिच्छेद रहित ब्रह्म। उनका जन्म निर्गुण से सगुण तथा निराकार से साकार होने की घटना नहीं है। उनका जन्म किसी अवतार का पृथ्वी पर शरीर धारण करना नहीं है।