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Written By Author कुंवर राजेन्द्रपालसिंह सेंगर

नंदकुमार सिंह एकमात्र प्रत्याशी रहे जिन्होंने खंडवा सीट 6 बार जीती

नंदकुमार सिंह एकमात्र प्रत्याशी रहे जिन्होंने खंडवा सीट 6 बार जीती - Khandwa by election in Madhya Pradesh
कुछ माह पूर्व कोरोना महामारी की दूसरी लहर दौरान रिक्त हुई मालवा-निमाड़ क्षेत्र की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट खंडवा इन दिनों चर्चाओं में है। उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है और दोनों ही दलों के लिए प्रत्याशी चयन दुविधा भरा है। हालांकि कांग्रेस ने राजनारायण सिंह पुरणी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। भाजपा उम्मीदवार की घोषणा शेष है, लेकिन स्व. नंदकुमार सिंह के पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान दावेदारी की दौड़ में सबसे आगे हैं। 
 
बहरहाल भाजपा यहां पर बढ़त बनाए हुए क्योंकि वर्ष 1996 के बाद से दिवंगत सांसद नंदकुमारसिंह चौहान ने पहली बार में लगातार 4 और दूसरी बार मे लगातार 2 लोकसभा चुनाव जीते और खंडवा लोकसभा पर लगभग 20 वर्ष तक भगवा लहराया।   उन्हें वर्ष 2009 में पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के सामने के बार हार का सामना करना पड़ा। रविवार को चुनाव लड़ने में असमर्थता जहिर कर चुके पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने एक बार फिर बागली विधानसभा क्षेत्र का दौरा किया और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की लेकिन चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया।
 
यादव ने कदम पीछे लिया : रविवार रात को चुनाव लड़ने में असमर्थता जाहिर करने वाले पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव सोमवार को  बागली राजपरिवार के निवास गढ़ी पहुंचे। उन्होंने दिवंगत राजा छत्रसिंहजी को श्रद्धासुमन अर्पित किए और मीडिया से चर्चा में कहा कि कांग्रेस पार्टी को किसी नौजवान को मौका देना चाहिए। मैं स्वयं 4 लोकसभा व 1 विधानसभा चुनाव लड़ चुका हूं और कई पदों पर रह चूका हूं इसलिए मैंने खुद ही कहा है कि किसी कर्मठ और युवा साथी को अवसर देना चाहिए जो संघर्षशील हो।
 
उन्होंने कांग्रेस में किसी गुटबाजी की सम्भावना से इंकार करते हुए कहा की हम सब कमलनाथजी के नेतृत्व में कार्य कर रहे हैं। नर्मदा सिंचाई योजना के बारे में उन्होंने कहा कि हम कई दिनों से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं और यह बागली क्षेत्र का दुर्भाग्य ही है कि कैलाश जोशीजी ने यहां से इतने वर्ष तक प्रतिनिधित्व किया और भाजपा के प्रतिनिधियों का वर्चस्व रहा और फिर भी बागली क्षेत्र इंतजार ही करता रहा। 
 
तीन माह से सक्रिय हैं प्रत्याशी : कोरोना की दूसरी लहर के बाद अनलॉक शुरू होते ही उम्मीदवारों ने अपनी संभावनाओं को टटोलना शुरू कर दिया था। सबसे पहली शुरुआत भाजपा नेताओं ने की थी। उन्होंने बागली विधानसभा क्षेत्र में मातमपुर्सी के बहाने भ्रमण किया और आमजन व कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। इनमें प्रदेश की पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस, दिवंगत सांसद पुत्र हर्षवर्धनसिंह चौहान प्रमुख थे। सतवास में आयोजित एक निजी कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी चर्चाओं में रहा। साथ ही संघ के माध्यम से अपने लिए संभावना तलाश रहे पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे प्रमुख थे।  
 
रक्षाबंधन पर भाजपा कार्यकर्ताओं के मध्य पहुंची पूर्व मंत्री चिटनीस की राखी और पाती भी बहुत चर्चा में रही थी। इस दौरान पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यादव ने भी बागली क्षेत्र का दौरा किया था, लेकिन टिकट घोषित होने के एन पहले इंकार करके उन्होंने  चर्चाओं को बल दे दिया।
 
हर्षवर्धन सबसे प्रभावी : वर्ष 1980 से अब तक पिछले 40 वर्ष में हुए 11 लोकसभा चुनावो में सर्वाधिक 7 बार भाजपा ने खंडवा फतह करने में सफलता हासिल की है। जिसमें नंदकुमारसिंह सर्वाधिक 6 बार सांसद रहे। इससे साफ़ है की भाजपा यहां पर कांग्रेस से एक कदम आगे है। साथ ही पिछले दो लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के दौरान उपजे महौल से भाजपा उत्साहित है। दूसरी और कांगेस से यादव के हटने के बाद कांगेस के पास स्थानीय स्तर पर इतना मजबूत प्रत्याशी भी नहीं है, जो कि अगले 24 दिनों में खंडवा लोकसभा के 8 विधानसभा क्षेत्रों को नाप सके।
 
भाजपा में इस समय तीन उम्मीदवार हर्षवर्धनसिंह चौहन, अर्चना चिटनीस और कृष्णमुरारी मोघे प्रमुख हैं। जो कि क्रमशः 30,57 और 73 वर्ष के है।  ऐसे में भाजपा के उम्र वाले मापदंड के अनुसार हर्षवर्धनसिंह सबसे युवा हैं जो कि लम्बे समय तक पार्टी और जनता की सेवा कर सकते हैं। साथ ही लोकसभा क्षेत्र में नंदू भैया के निजी और पार्टी के समर्थकों की सहयता भी उन्हें मिलेगी और नंदू भैया की साफ छवि के चलते सहानुभूति के मत हासिल होने की भी पूरी-पूरी संभावना है। जबकि मोघे पिछले लम्बे समय से पार्टी में हाशिये पर हैं और चिटनीस वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में अपनी विधानसभा सीट ही नहीं बचा सकी थीं।
 
ऐसे में संसदीय उम्मीदवार बनने की उनकी क्षमता कम ही नजर आती है। साथ ही नंदकुमारसिंह ने खंडवा लोकसभा से 7 लोकसभा चुनाव लड़े जिनमें 6 उन्होंने जीते। साथ ही जब भी वे जीते भाजपा को कम से कम 50 प्रतिशत से अधिक मत मिले। जबकि अरुण यादव ने वर्ष 2009 में चौहान के विजय रथ को रोका था, लेकिन उस समय भो कांग्रेस को 49 प्रतिशत मत ही मिले थे। वैसे भी खंडवा लोकसभा क्षेत्र में 76 प्रतिशत लोग गांवों में निवास करते हैं और गांवों में भाजपा का प्रदर्शन हमेशा अच्छा रहता है।  
आंकड़ों में खंडवा लोकसभा : मतों के अंतर से खंडवा लोकसभा में सबसे बड़ी जीत नंदकुमारसिंह चौहान ने वर्ष 2019 में दर्ज की थी। जिसमें उन्हें कांग्रेस के अरुण यादव पर 2 लाख 73 हजार 343 मतों से विजय प्राप्त हुई थी। जबकि हार-जीत में सबसे कम अंतर वर्ष 1967 में हुआ था जब कांग्रेस के गंगाचरण दीक्षित ने 1698 मतों से चुनाव जीता था। वर्ष 1962 से पहले तीन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीते। वर्ष 1977 में परमानन्द ठाकुरदास जीते, जो कि पहले गैर कांग्रेसी थे। इसके बाद से ही दीक्षित को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। यहीं से ही कांग्रेस को स्थायी उम्मदीवार नहीं मिला।
 
खंडवा लोकसभा क्षेत्र में निमाड़ की 7 और मालवा की एक विधानसभा सीट सम्मलित हैं। कांग्रेस के दीक्षित के बाद यादव ही एकमात्र ऐसे उम्मीदवार थे, जिन्होंने खंडवा से तीन बार लोकसभा चुनाव लड़ा।  
कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि उपचुनाव के विजेता को लगभग दो वर्ष का कार्यकाल मिलेगा। ऐसे में 4 वर्ष में दो चुनाव लड़ने के स्थान पर पूर्व  कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यादव आने वाले दिनों में वर्ष 2024 का इंतजार करें। क्योंकि पंजाब में हुई उथल-पुथल और राजस्थान व छत्तीसगढ़ में जारी कलह एवं मध्यप्रदेश में सिंधिया और उनके समर्थको की दलबदल ने यादव को प्रदेश में तीसरे नंबर का नेता तो बनाया है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस की स्थिति भाजपा की तुलना में बेहद ख़राब है।
 
सिंधिया के भाजपा में चले जाने और कांग्रेस आलाकमान के असफल रहने के कारण मध्यप्रदेश में 15 वर्षों बाद सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार गिर गई, जिससे कई कांग्रेस नेता असहज नजर आते हैं। 
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