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Written By शैफाली शर्मा

अपनी चोटी में बाँध लूँ दुनिया

जीवन के रंगमंच से...

अपनी चोटी में बाँध लूँ दुनिया -
SubratoND

“1942 - ए लव स्टोर”, स्वर्गीय पंचम दा की अंतिम कृति - एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा......
जैसे खिलता गुलाब,
जैसे शायर का ख्वाब,
जैसे उजली किरण,
जैसे बन में हिरण,
जैसे चाँदनी रात,
जैसे नरमी की बात,
जैसे मन्दिर में हो एक जलता दीया...............

क्या आप जानते हैं कि इस गीत की धुन एक भजन के लिए तैयार की गई थी? लेकिन, इस धुन में जावेद अख्तर साहब ने जो शब्द डाले हैं, वो मुझे किसी भजन के पवित्र शब्दों से कम नहीं लगते, क्योंकि मुझे लगता है यह गीत किसी प्रेमिका के लिए नहीं सिर्फ एक लड़की के लिए लिखा गया है जो एक बेटी भी हो सकती है, बहन भी, एक दोस्त या पत्नी भी।

कितनी पवित्र तुलना है......जैसे मन्दिर में हो एक जलता दीया.................
यदि हर लड़की खुद को इस गीत में ढालकर सुने, तो उसके मन में उतनी ही सुंदर भावनाएँ आएगी, जितनी सुंदरता से इसे लिखा गया है।

क्यों हर बार सिने तारिकाओं से तुलना कर अपने चेहरे या देह की सुंदरता की बात की जाए। क्यों न देह से परे मन की सुंदरता और पवित्रता की बात कर इसे मन्दिर में एक जलता हुआ दीया कहा जाए।
  क्या आप जानते हैं कि इस गीत की धुन एक भजन के लिए तैयार की गई थी? लेकिन, इस धुन में जावेद अख्तर साहब ने जो शब्द डाले हैं, वो मुझे किसी भजन के पवित्र शब्दों से कम नहीं लगते, क्योंकि मुझे लगता है यह गीत सिर्फ एक लड़की के लिए लिखा गया है।      


एक गीत और है - रोजा फिल्म का, “दिल है छोटा-सा छोटी-सी आशा.....आपको पता है इस गाने में मेरी फैवरेट लाइन कौन-सी है?....अपनी चोटी में बाँध लूँ दुनिया......” महत्वाकांक्षा और स्वच्छंदता की इससे ऊँची उड़ान और क्या हो सकती है कि दुनिया को अपनी चोटी में बाँध लेने की ख्वाहिश जाग उठे।

और सिर्फ ख्वाहिश ही क्यों, मैंने आजकल की कुछ कन्याओं को जीवन को इतनी सरलता से लेते हुए भी देखा है कि वे मुझे जीवन की बगिया में उड़ती तितलियाँ-सी लगती हैं, जो जितनी अपनी प्राकृतिक सुंदरता से मन मोह लेती हैं, उतनी ही उनकी स्वच्छंद उड़ान के लिए। कहीं जीत कहीं हार होने के बावजूद, हर समय मुझे उनके चेहरे पर एक नई शुरुआत का जज्बा दिखाई देता है

हाँ, लेकिन जहाँ गंभीरता की बात आई है, कई ने आज अपने स्वतंत्र अस्तिव की जंग जीतकर अपनी पहचान भी बनाई है, फिर चाहे बात किरण बेदी के व्यक्तित्व की की जाए, या सुष्मिता सेन की जिसने एक अविवाहिता होते हुए एक बेटी को गोद लेकर समाज में एक नई मिसाल कायम की है।

क्यों हर क्षेत्र में “फेस वैल्यकी बात की जाती है? हम क्यों नही“हार्ट वैल्यकी बात करते? जिसका हृदय जितना सुंदर, उसकी आभा उतनी ही चेहरे को दमकाती है। उसका ऑरा खुद ब खुद लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। फिर किसी की क्या मजाल कि कोई लालायित नजर भी पड़ें।

अपने व्यक्तित्व में वो सामर्थ्य लाएँ कि बुरी नजरें भी सजदे में झुक जाएँ।