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Written By DW
Last Modified: बुधवार, 31 मई 2023 (08:04 IST)

मोदी सरकार के 9 साल: क्या बदला इन सालों में

मोदी सरकार के 9 साल: क्या बदला इन सालों में - What changes in 9 years of modi government
चारु कार्तिकेय
मोदी सरकार अपने नौ साल पूरे होने का जश्न मना रही है। ऐसे में सरकार के नौ सालों के रिकॉर्ड का मूल्यांकन भी किया जा रहा है। आखिर इन नौ सालों में किस तरह के बदलाव आए हैं?
 
मोदी सरकार की यह ऐतिहासिक वर्षगांठ ऐसे समय में आई है जब दो ही दिन पहले सरकार द्वारा आयोजित किये गए एक भव्य कार्यक्रम की चर्चा चल रही है। विपक्ष की 19 पार्टियों के बहिष्कार के बीच नए संसद भवन के उद्घाटन का कार्यक्रम जिन विवादों से घिरा रहा उन्हीं में इन नौ सालों का सार ढूंढा जा सकता है।
 
पहला शब्द जो मन में आता है वो है चकाचौंध। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से इस चकाचौंध की जो यात्रा शुरू हुई, वो आज तक जारी है। सरकार को अपने जिस भी कदम के पीछे अपनी राजनीतिक पूंजी लगानी थी, उसे भव्य बनाया गया।
 
चकाचौंध के पीछे छिपता सच
प्रधानमंत्री का पहली बार संसद में प्रवेश, फिर शपथ ग्रहण, जीएसटी को लागू किया जाना, नोटबंदी, हर चुनाव जीतने के बाद बीजेपी मुख्यालय में भव्य जश्न, सेंट्रल विस्टा का उद्घाटन, जी20 की आवर्ती अध्यक्षता मिलना और फिर नए संसद भवन का उद्घाटन जैसे सभी कार्यक्रम चकाचौंध भरे रहे।
 
लेकिन इतना हीं नहीं, जिन जिन मोर्चों पर सरकार कमजोर पड़ती दिखाई दी वहां भी कमजोरी को छिपाने के लिए चकाचौंध का ही इस्तेमाल किया गया। जैसे पुलवामा आतंकी हमले के बाद 'सर्जिकल स्ट्राइक' और कोविड में भयानक कुप्रबंधन के बाद टीका टीकाकरण अभियान का गुणगान।
 
ऐसा लगा जैसे माहौल को धुंए से भर देने की एक कोशिश हो जिसके पीछे असलियत छिप जाए। और इन नौ सालों में असलियत अधिकांश समय तो छिपी ही रही। कमजोरियों को छिपा देना इन नौ सालों की दूसरी विशिष्टता रही।
 
सत्ता में आते ही सबसे पहले जीडीपी का हिसाब का लगाने का तरीका ही बदल दिया गया और उसके बाद आज तक कोई पड़ताल नहीं की गई कि नया तरीका अर्थव्यवस्था की हकीकत बयान करता है या नहीं। 2023 आधा बीत चुका है लेकिन जनगणना 2021 अभी तक शुरू नहीं की गई है।
 
सरकारी सर्वे ने बताया कि बेरोजगारी इतनी हो गई है जितनी चार दशक में नहीं हुई तो सर्वे की रिपोर्ट को जारी ही नहीं किया गया। नौ सालों में प्रधानमंत्री ने एक भी प्रेस वार्ता नहीं की। कुछ सुनियोजित साक्षात्कार जरूर कराए गए जिनमें "आप आम चूस कर खाते हैं या काट कर" जैसे सवाल किए गए।
 
सत्ता का सिमटना
पुलवामा हमले पर जो आत्मनिरीक्षण होना चाहिए था वो 'सर्जिकल स्ट्राइक' के धुएं के पीछे छिप गया। कोविड से कितने लोगों की मौत हुई उसके भी सही आंकड़े जारी नहीं किए गए। नोटबंदी 2।0 आ गया लेकिन पहली वाली नोटबंदी आखिर की क्यों गई, इसका अंतिम जवाब आज तक नहीं मिला है।
 
चीन की सेना भारत में कैसे दाखिल हो है, उसके हाथों भारतीय सैनिक कैसे मारे गए, चीनी सेना ने घुसपैठ कर भारत की जितनी जमीन हथिया ली, इस तरह के सवालों को तो भूल ही जाइये।
 
सत्ता का केन्द्रीकरण इन नौ सालों की तीसरी विशेषता है। पहले भी सरकारों को प्रधानमंत्रियों के नाम से पहचाना जाता रहा है, लेकिन पिछले नौ सालों में राज्य के पूरे तंत्र को सिर्फ प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व में समेट देने की कोशिश की गई है।
 
मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत और विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति के विभाजन के सिद्धांत को भी तिलांजलि देने का इंतजाम किया जा रहा है। हर जगह एक ही नाम, एक ही तस्वीर और एक ही व्यक्ति का गुणगान है।
 
हालांकि अब देश उस मोड़ की तरफ बढ़ रहा है जहां इन सभी कसौटियों पर एक बार फिर मोदी सरकार का मूल्यांकन होगा। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार जनमत हासिल करने की कोशिश करेगी। लेकिन अगले एक साल में मोदी सरकार अपने तरीके बदलेगी इसका कोई संकेत अभी तक सामने नहीं आया है।
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