चारु कार्तिकेय
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही आधिकारिक यात्रा पर रूस जाने वाले हैं। लेकिन भारत-रूस संबंधों के साथ साथ इस यात्रा का भारत के पश्चिमी देशों के साथ संबंधों पर क्या असर पड़ेगा?
अभी तक मोदी की रूस यात्रा की तारीख की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन रूस की तरफ से यात्रा की पुष्टि हो चुकी है। मंगलवार को रूसी सरकार के प्रवक्ता मित्री पेस्कोव ने यात्रा की पुष्टि करते हुए कहा कि यात्रा की तैयारियां "अंतिम चरण" में हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पिछले सप्ताह अपनी साप्ताहिक प्रेस वार्ता में बस इतना कहा था, "हमारे और रूस के बीच एक सुस्थापित द्विपक्षीय शिखर व्यवस्था है।।।और दोनों देश अगली बैठक आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं।
किन विषयों पर हो सकती है बातचीत
भारत में कई मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि मोदी अगले सप्ताह मॉस्को में होंगे। अगर ऐसा होता है तो यह लगभग पांच सालों में उनकी पहली रूस यात्रा होगी। वो पिछली बार 2019 में रूस गए थे और व्लादिवोस्तोक में एक आर्थिक सम्मलेन में हिस्सा लिया था।
पुतिन आखिरी बार भारत 2021 में आए थे। 2022 में मोदी को मॉस्को जाना था लेकिन उसी साल फरवरी में रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया। उसके बाद से अभी तक मोदी रूस नहीं गए हैं। अब यह यात्रा ऐसे समय में होने वाली है जब मोदी हाल ही में लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने हैं।
इस बार जब दोनों नेता मॉस्को में मिलेंगे तो दोनों के बीच कई विषयों पर बातचीत हो सकती है। पेस्कोव का कहना है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक और आर्थिक रिश्तों को और मजबूत करना मोदी की यात्रा की आवश्यक थीम रहेगी।
उन्होंने यह भी कहा कि क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को हमेशा ऐसी बैठकों में वरीयता दी जाती है। कुछ जानकारों का मानना है कि इस यात्रा से भारत रूस में इन चिंताओं को शांत कर सकता है कि वह पश्चिम के बहुत करीब और रूस से दूर जा रहा है।
मॉस्को में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार अलेक्सेई जाखारोव ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "यह मॉस्को के लिए मीडिया में राष्ट्रपति पुतिन की एक ऐसे नेता की छवि दिखाने का एक अच्छा मौका होगा जो भारत जैसे देश के नेता का स्वागत कर रहा है, वाशिंगटन बैठक के संदर्भ में।"
रूस यात्रा से चीन पर नजर
मोदी की यात्रा के समय ही वाशिंगटन में नाटो की बैठक हो रही होगी, जिसमें यूक्रेन मुख्य मुद्दों में से होगा। जाखारोव के मुताबिक, "भारत का उद्देश्य है यह सुनिश्चित करना कि रूस चीन के पाले में ना चला जाए और भले ही वो खुल कर भारत का समर्थन ना करे, लेकिन भारत-चीन विवादों में स्थायी निष्पक्षता बरकरार रखे।"
नई दिल्ली स्थित आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में समीक्षक नंदन उन्नीकृष्णन का कहना है कि मोदी के रूस ना जाने की वजह से अटकलें लगने लगी थीं कि "भारत-रूस संबंधों में किसी तरह की दूरी आ गई है।"
उन्होंने रॉयटर्स को बताया, "इसलिए मुझे लगता है कि मोदी की यह यात्रा इन अटकलों का अंत कर देगी। और हम किसी और के साथ संबंधों की वजह से किसी के साथ भी अपनी रिश्ते खराब नहीं करना चाहते हैं, चाहे वो रूस हो, अमेरिका हो या कोई और हो।"
दिलचस्प है कि भारत-रूस रिश्तों के समीकरण में चीन स्पष्ट रूप से मौजूद है। चार जुलाई को कजाखस्तान के अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एसीओ) की बैठक होने वाली है लेकिन वहां मोदी नहीं जा रहे हैं, जबकि पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों वहां होंगे। मोदी की जगह भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अस्ताना जाएंगे।
कुछ जानकारों का मानना है कि मोदी एससीओ की बैठक में ना जा कर चीन को यह संदेश देना जा रहे हैं कि दोनों देशों के संबंध गहरे तनाव में हैं। मई, 2020 में गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक मुठभेड़ के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है।