पाकिस्तान में इन-दिनों चुनावी सरगर्मी जोरों पर है। पारंपरिक राजनीतिक दलों के अलावा कई कट्टरपंथी दल भी अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं। एक पार्टी तो ऐसी भी है जो अमेरिका के वॉटेंड हाफिज सईद से चुनाव प्रचार करा रही है।
मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड कहे जाने वाले सईद पर अमेरिका ने 1 करोड़ डॉलर के ईनाम की घोषणा की हुई है। लेकिन वह पाकिस्तान की राजनीति में सक्रिय है। जानकार मानते हैं कि यह माहौल एक रुढ़िवादी देश को कट्टरपंथ की ओर ढकेल सकता है।
अमेरिका के विल्सन सेंटर में एशिया प्रोग्राम के डिप्टी डायरेक्टर माइकल कुग्लमैन कहते हैं, "कट्टरपंथी समूहों का आम चुनावों में भाग लेना बहुत मायने रखता है। यह इन्हें न सिर्फ सत्ता में आने का मौका देता है बल्कि ये गुट अपनी राजनीतिक बढ़त का इस्तेमाल कट्टरपंथी विचारधारा को जायज ठहराने के लिए कर सकते हैं।"
कैसे करते हैं काम
पाकिस्तान का ऐसा ही एक राजनीतिक संगठन है मिली मुस्लिम लीग (एमएमएल)। अप्रैल, 2018 में अमेरिका ने एमएमएल को विदेशी आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल दिया था। कहा गया था कि ये लश्कर ए तैयबा का साथी संगठन है जिसे बनाने में हाफिज सईद का भी हाथ है। हाफिज सईद पर 2008 में हुए मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड होने के आरोप लगते हैं। इसके अलावा उसे अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी करार दिया है।
पहले पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने एमएमएल को 2018 के आम चुनावों के लिए रजिस्टर करने से मना कर दिया था। इसके बाद हाफिज सईद ने अपने साथियों को पहले से रजिस्टर पार्टी अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक पार्टी से टिकट दिलवाए।
एक ही पार्टी
कुग्लमैन मानते हैं कि ऐसे राजनीतिक संगठन आतंकवादी गुटों के कट्टरपंथी और उग्र विचारों को सामने लाते हैं। वह कहते हैं ऐसे विचारों के पाकिस्तान के माहौल में खपने की संभावना भी अधिक है। संसदीय चुनावों में पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर से खड़े उम्मीदवार मोहम्मद याकूब शेख खुले आम कहते हैं कि अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक और एमएमएल एक ही पार्टी है। अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक के 260 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।
हाल में दक्षिणी पंजाब के फैसलाबाद शहर में एक राजनीतिक मंच पर जब सईद ने कदम रखा तो उस पर फूलों की बारिश की गई। हाफिज सईद को दुनिया एक आतंकवादी के रूप में पहचानती है लेकिन जब उसके साथ समर्थकों की भीड़ नजर आए तो यह कुछ अजीब सा नजारा हो जाता है। सईद अपनी चुनावी रैली में भारत और अमेरिका के रुख को इस्लाम के लिए खतरा बताता है। उसने कहा, "हिंदुओं, यहूदियों और ईसाइयों के खिलाफ हमारी जंग जारी रहेगी।"
अधिकार समूह और सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि सेना इन कट्टरपंथियों गुटों का लाभ उठाकर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ता से दूर रखना चाहती है। देश के पिछले 71 साल के इतिहास में तकरीबन 31 साल सेना ने प्रत्यक्ष रूप से तो बाकी सालों में परोक्ष रूप से शासन किया है।
अब इन चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सेना से सीधे मुकाबला कर रहे हैं। शरीफ राजनीति में सेना के दखल की आलोचना कर रहे हैं। पाकिस्तान की एक अदालत ने भ्रष्टाचार और अवैध संपत्ति मामले में नवाज शरीफ को 10 साल की कैद और उनकी बेटी मरियम शरीफ को 7 साल की सजा सुनाई है। इसे पीएमएल-एन समर्थक राजनीतिक षड्यंत्र मानते हैं।
कुग्लमैन मानते हैं कि सेना कट्टरवादी गुटों का इस्तेमाल राजनीति पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए कर रही है, क्योंकि ये समूह पीएमएल-एन के समर्थकों को खिसका सकते हैं।
आने वाली मुश्किल
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ पीस स्टडीज से जुड़े मोहम्मद आमिर राणा कहते हैं, "कट्टरपंथी सुन्नी गुटों ने अपना नाम बदल लिया है लेकिन उनका एजेंडा पुराना है।" राणा मानते हैं, "चुनावी लाभ उन्हें मान्यता दे सकता है और वे अपना प्रभाव फैला सकते हैं।"
अल्लाह-ओ-अकबर पार्टी की तरह एक अन्य कट्टरपंथी समूह है तहरीक-ए-लबैक पाकिस्तान। जानकारों के मुताबिक अगर ये पार्टी चुनावों में थोड़ी-बहुत भी सीट जीत लेती है तो नीति-निर्माताओं के लिए विवादित ईशनिंदा कानून को खत्म करना आसान नहीं होगा।
एए/एके (एपी)