बेटे की याद में फावड़ा चलाता बाप
जवान बेटे की मौत से बाप बुरी तरह बिखर गया। परिवार के विलाप के बीच उसने दूसरों के बच्चों के लिए कुछ करने की ठानी। तब से लेकर आज तक वह फावड़ा चला रहा है।
मुंबई में सब्जी बेचने वाले दादाराव बिल्होरे की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था। 16 साल का बेटा प्रकाश बिल्होरे पढ़ाई लिखाई में अच्छा था। परिवार को उम्मीद थी कि एक दिन प्रकाश अपना मुकाम हासिल कर लेगा। लेकिन जुलाई 2015 में परिवार को सपने चकनाचूर हो गए। प्रकाश अपने चेचरे भाई के साथ मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर कहीं जा रहा था। तभी मोटरसाइकिल एक बड़े गड्ढे में गई। दोनों युवा हवा में उछलते हुए जमीन से टकराए। चचेरे भाई ने हेलमेट पहना था, उसे मामूली चोटें आईं। लेकिन बिना हेलमेट के पीछे बैठे प्रकाश के सिर पर गंभीर चोटें आई। वह नहीं बच सका।
जवान बेटे की अकाल मृत्यु ने दादाराव के परिवार को झकझोर दिया। घर पर जारी विलाप और सन्नाटे के खेल के बीच दादाराव ने ठान ली कि वह दूसरे बच्चों को प्रकाश की तरह अकाल मौत नहीं मरने देंगे। कुछ ही दिन बाद दादाराव ने अकेले फावड़ा उठाया और मुंबई की सड़कों के गड्ढे भरने शुरू कर दिए। 48 साल के दादाराव कहते हैं, "प्रकाश की अचानक मृत्यु ने हमारे जीवन में एक बड़ा शून्य पैदा कर दिया। मैं यह काम प्रकाश को श्रद्धाजंलि देने के लिए करता हूं। मैं नहीं चाहता कि कोई और अपनों को इस तरह खोये जैसे हमने खोया है।"
मुंबई की सड़कों पर गड्ढे कोई नई बात नहीं हैं। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के मुताबिक पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा गड्ढे मुंबई की सड़कों पर हैं। प्रशासन अकसर कहता है कि मानसून की भारी बारिश के बाद सड़कों पर गड्ढे हो जाते हैं। तमाम इंजीनियरों वाले महकमे और उन्हें चलाने वाला प्रशासन 1947 से आज तक यह पता नहीं लगा सका है कि टिकाऊ सड़क कैसे बनाई जाएं। मुंबई निवासी नवीन लाडे के मुताबिक खुद उन्होंने महानगर की सड़कों पर 27,000 गड्ढे रिकॉर्ड किए हैं। यह डाटा www.mumbaipotholes.com वेबसाइट पर देखा जा सकता है। अधिकारी इसे आंकड़े को खारिज करते हैं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सड़कों पर मौजूद गड्ढों की वजह से 2017 में भारत में 3,597 लोगों की जान गई, औसतन हर दिन 10 लोग मारे गए। घटिया सड़कों के लिए सरकारी उदासीनता और स्थानीय प्रशासन में घुसे भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया जाता है। यह भी कहा जाता है कि ठेकेदार जानबूझकर खराब सड़कें बनाते हैं, ताकि अगले साल फिर से उनकी मरम्मत का टेंडर निकाला जाए।
इस बहस के बीच दादाराव बिल्होरे मिट्टी, कंकड़ और गारा जमा कर गड्ढों को भरने में लगे रहते हैं। फावड़े से गड्ढे को भरने के बाद वह भरे हुए माल को काफी देर तक दबाते है, ताकि गड्ढा फिर से न उभरे। अब दादाराव के साथ कई और लोग भी जुट चुके हैं। सब मिलकर अब तक 585 से ज्यादा गड्ढे भर चुके हैं। दादाराव कहते हैं, "सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए और बेहतर आधारभूत ढांचा बनाना चाहिए।"
इस बीच दादाराव की कहानी कई अखबारों में छप चुकी है। उन्हें कुछ अवॉर्ड्स और "पॉटहोल दादा" उपनाम भी मिल गया। लेकिन इस सबके पीछे दिल के कोने में छुपा प्रकाश हर वक्त पुकारता रहता है। दादाराव कहते हैं, "हमारे काम को मिली पहचान ने मुझे दर्द से निपटने की शक्ति दी है और मैं जहां भी जाता हूं, मुझे लगता है कि प्रकाश मेरे साथ खड़ा है। जब तक मैं जिंदा हूं और चल फिर सकता हूं तब तक मैं इन गड्ढों को निपटता रहूंगा।"
ओएसजे/एनआर (एएफपी)