इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में चीन की मदद चाहता है भारत
शहरों में स्मॉग से निबटने की सारी उम्मीदें अब इलेक्ट्रिक वाहनों पर टिकी है। भारत अपने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लक्ष्यों को पूरा करने में चीन की मदद चाहता है। 2030 तक इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का लक्ष्य हासिल करने का इच्छुक भारत चीन के इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग की मदद चाहता है। नीति आयोग के मुख्य सलाहकार अनिल श्रीवास्तव ने चीन में ग्लोबल जीरो समिट में चीनी उद्योग का भारत की महात्वाकांक्षी योजना में शामिल होने का निमंत्रण दिया है। चीन दुनियाभर में कारों के उत्पादन और बिक्री का सबसे बड़ा बाजार है। पिछले साल वहां सवा दो करोड़ कारों की बिक्री हुई है।
हालांकि चीन में परंपरागत कारों की बिक्री गिर रही है, लेकिन नई ऊर्जा वाली कारों की बिक्री बढ़ रही है। अमेरिकी इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला के प्रमुख इलॉन मस्क ने शंघाई में कंपनी के 7 अरब डॉलर के प्लांट का उद्घाटन किया है। यहां साल में पांच लाख कारें बनेंगी। चीन ने हाल ही में विदेशी कार कंपनियों को पूरे स्वामित्व वाली कंपनियां खोलने की इजाजत दी है।
भारत के इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रोग्राम का मकसद कार्बन उत्सर्जन को घटाने के साथ पेट्रोल की बचत करना है जो उसे विदेशी मुद्रा देकर खरीदना होता है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2030 तक सकल बिक्री में इलेक्ट्रिक कारों का हिस्सा 30 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है। फिलहाल ये लक्ष्य कारों के बदले टू व्हीलर में पूरा होता दिख रहा है जिसके सस्ते होने की वजह से बिक्री तेजी से बढ़ रही है। मसलन ओकीनावा कंपनी के इलेक्ट्रिक स्कूटर में बैटरी के सिंगल चार्जिंग में पेट्रोल के मुकाबले सिर्फ 10 फीसदी खर्च होता है और स्कूटर 100 से 120 किलोमीटर का फासला तय करता है।
भारत में कारों के बदले टू व्हीलर का बाजार फैल रहा है तो चीन में कारों का बाजार बढ़ रहा है। खासकर बीजिंग जैसे शहरों में जहां पेट्रोल या डीजल की कारों के लिए लाइसेंस नहीं मिलता, लोग अत्यंत महंगा होने के बावजूद इलेक्ट्रिक कारें खरीद रहे हैं। इलेक्ट्रिक ऑटो स्टार्टअप नियो की ईएस8 मॉडल कार की कीमत 57,000 यूरो है। लेकिन ग्राहकों को ये भी मंजूर है। दरअसल चीन की सरकार कंबशन इंजिन वाली कारों के उत्पादन को हतोत्साहित कर रही है और उसे आर्थिक तौर पर कम आकर्षक बना रहे हैं ताकि लोग इलेक्ट्रिक कारें खरीदें। इसके अलावा एक कोटा सिस्टम लागू कर कार उत्पादकों पर खास मात्रा में इलेक्ट्रिक कारें बनाने के लिए दबाव डाला जा रहा है। कोई शक नहीं कि चीन न्यू एनर्जी वाहनों का सबसे बड़ा बाजार बन गया है।
पिछला साल चीन के इलेक्ट्रिक कार उद्योग के लिए बहुत कामयाब साल रहा है। सालभर में 10 लाख से ज्यादा इलेक्ट्रिक कारें बिकीं। ये कुल बिक्री का करीब 5 फीसदी है। इसकी तुलना में जर्मनी में नई कारों की बिक्री में इलेक्ट्रिक कारों का हिस्सा सिर्फ 1.9 प्रतिशत था। फिर भी विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस साल जर्मनी की सड़कों पर हालात सुधरेंगे। एक तो चीनी कंपनियों की पहलों के चलते जर्मन कार कंपनियों पर दबाव बढ़ा है क्योंकि उनके लिए चीनी बाजार पिछले सालों में जर्मन बाजार से भी महत्वपूर्ण हो गया है।
- महेश झा