दिल्ली के बीचोंबीच स्थित अरुण जेटली स्टेडियम में नजारा जरा दूधिया है। क्रिकेट विश्व कप चल रहा है और मैदान में बांग्लादेश की टीम श्रीलंका को हराने की तरफ बढ़ रही है, लेकिन यह खिलाड़ी किसी ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि इनसे ईर्ष्या हो सके।
यहां हवा की गुणवत्ता इतनी खराब है कि मैच के पहले की ट्रेनिंग को रद्द करना पड़ा था। दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 'अनहेल्दी' और 'हाजारडस' के बीच में झूल रहा है। हालात इस कदर खराब हैं कि घर के बाहर गतिविधियों की मनाही कर दी गई है क्योंकि उनसे स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
भारत की ओलंपिक उम्मीदों का क्या होगा
मैचों के दौरान होने वाली समस्याओं को कम करने के लिए आयोजकों ने ड्रेसिंग रूम में एयर प्यूरीफायर लगवाए हैं और पिच पर वॉटर मिस्टिंग करवाई है।
भारत के कप्तान रोहित शर्मा कहते हैं, "एक आदर्श दुनिया में ऐसी स्थिति होनी ही नहीं चाहिए। लेकिन मुझे विश्वास है कि संबंधित लोग इस तरह की स्थिति ना आने देने के लिए आवश्यक कदम उठा रहे हैं। यह आदर्श नहीं है, यह सब जानते हैं।"
2036 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी करना चाहने वाले देश के रूप में विश्व यूप के दौरान समस्याएं भारत की छवि के लिए भी अच्छी खबर नहीं हैं। स्मॉग से भरी दिल्ली की तस्वीरें इस दिशा में भारत की कोई मदद नहीं कर रही हैं।
लेखक डेविड गोल्डब्लैट ने डीडब्ल्यू को बताया कि एलीट खेलों का पर्यावरणीय और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होना काफी आम होता जा रहा है। वो कहते हैं, "ऑस्ट्रेलियन ओपन हीट वेव के दौरान खेला गया था और उस समय गर्मी से जुड़ी समस्याओं के लिए करीब एक हजार लोगों का इलाज करना पड़ा था।"
उन्होंने यह भी कहा, "टोक्यो 2020 में खुले में तैराकी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक 30 डिग्री तापमान के पानी में हो रही थी। एक दिन इस तरह के कार्यक्रमों में से कोई ना कोई प्रलयात्मक हो जाएगा।"
खेलों की भूमिका
गोल्डब्लैट फुटबॉल फॉर फ्यूचर के सह-संस्थापक हैं। यह संस्था फुटबॉल से जुड़े लोगों को चुनौती देती है कि वो बदलती दुनिया में अपनी भूमिका निभाएं। वो मानते हैं कि खेलों की दुनिया को बदलना पड़ेगा और अनवरत बढ़ोतरी की जगह कमी की तरफ बढ़ना होगा।
उन्होंने बताया, "बड़ा सवाल यह है कि अगले 20 सालों में वैश्विक खेलों और खास कर डोमेस्टिक खेलों को गहराई से सोचना पड़ेगा: क्या हम हमेशा बढ़ते रह सकते हैं? शायद असल में हमें कम करने की जरूरत है।"
ज्यादा और कम के बीच की लड़ाई इस समय सबसे ज्यादा स्कीइंग में नजर आ रही है। यह वो खेल है जो जलवायु संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। इसकी अंतरराष्ट्रीय गवर्निंग संस्था मौजूदा विश्व कप कैलेंडर का और विस्तार करना चाह रही है, लेकिन आलोचना बढ़ती जा रही है।
ऑस्ट्रिया के स्कीइंग संघ के महासचिव क्रिस्चियन शेरर कहते हैं, "हम जलवायु परिवर्तन को नकार नहीं सकते हैं और हमें इसके अनुकूल खुद को बदलना ही होगा।"
स्नो सुरक्षा और मौजूदा स्थानों का इस्तेमाल करने जैसे सस्टेनेबिलिटी के प्रयास भविष्य में केंद्रीय भूमिका निभाएंगे जब बड़े कार्यक्रमों के मेजबान चुनने की बारी आएगी। यह गर्मी के हालात और हवा की गुणवत्ता पर भी लागू होता है, जैसे कि अभी भारत में देखा जा रहा है।
2030 का विश्व कप: "बददिमागी"
खेल सिर्फ जलवायु संकट के ही पीड़ित नहीं हैं। शौकिया खिलाड़ियों का प्रशिक्षण के लिए हफ्ते में कई बार गाड़ी दौड़ाना हो या ओलंपिक जैसे बड़े कार्यक्रमों के लिए प्रतिस्पर्धा हो, जहां तक पर्यावरण का सवाल है, खेल दोषी भी हैं।
2030 के विश्व कप के बारे में गोल्डब्लैट कहते हैं, "यह सांकेतिक रूप से बददिमागी भरा है।" एक फुटबॉल फैन होने के नाते उन्हें उरुग्वे में टूर्नामेंट को शुरू किए जाने से सहानुभूति है, लेकिन वो कहते हैं कि एक ऐसा टूर्नामेंट जिसमें तीन महाद्वीपों में 105 मैच खेले जाएंगे और हजारों फैन यहां से वहां यात्रा करेंगे, पर्यावरण की दृष्टि से यह मजाक है।"
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति और फीफा जैसे खेल संघ अपने कार्यक्रमों को "जलवायु अनुकूल" या "जलवायु न्यूट्रल" बताने की कोशिश में कार्बन डाइऑक्साइड मुआवजा कार्यक्रमों के लिए पैसे दे रहे हैं, लेकिन गोल्डब्लैट कहते हैं कि यह "एक प्रशंसनीय योजना नहीं है।"
विडंबना यह है कि फीफा और आईओसी दोनों ने विश्व जलवायु सम्मेलन के तहत जलवायु परिवर्तन के लिए और कदम उठाने की प्रतिबद्धता जताई है। उनका लक्ष्य है 2023 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आधा करना और 2040 तक शून्य कर देना।
और समर्थन की जरूरत
क्रिकेट की गवर्निंग संस्था यूएन एक्शन प्लान में शामिल नहीं हुई है लेकिन उसने अपने सस्टेनेबिलिटी लक्ष्य बनाए हैं। स्मॉग से भरा यह विश्व कप दिखा रहा है कि यह कितना जरूरी है कि खेल पर्यावरण के संरक्षण के लिए रोल मॉडल बनें।
गोल्डब्लैट कहते हैं कि खेलों की दुनिया से ही जानी मानी आवाजों की जरूरत है। उन्होंने बताया, "हमें एक मार्कस रैशफोर्ड की जरूरत है। हमें इस तरह के सभी मर्द और महिलाएं फुटबॉल और क्रिकेट में चाहिए। कहां है वो भारतीय क्रिकेटर जो इसके लिए खड़ा होगा? और उसकी भारतीय राजनीति में भी एक अहम् आवाज होगी।"
पर्यावरण के लिए खड़े होने वाले खिलाड़ी हैं। ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट कप्तान पैट कमिंस क्रिकेट पर जलवायु असर के बारे में बोलते रहे हैं। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के साथ काम भी किया है यह सुनिश्चित करने के लिए कि संघ जलवायु के लिए अपने हिस्से का काम कर रहा है। कमिंस कहते हैं कि नहीं तो जल्द ही "वो खेल जिसे हम प्यार करते हैं वो ही खत्म हो जाएगा।"
(येंस क्रेपेला)