भारत में योग्यता का पैमाना बन रही है अंग्रेजी
भारत सरकार हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाना चाहती है तो दूसरी ओर बहुत से लोगों द्वारा अंग्रेजी को गुलामी का प्रतीक मानने के बावजूद वह वैश्वीकरण के दौर में दुनिया से जुड़ने की कुंजी साबित हो रही है।
अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान लार्ड मैकाले द्वारा साल 1835 में भारत में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा की शुरू किए जाने के करीब 182 साल बाद भी 22 आधिकारिक भाषा और 350 बोलियों वाले देश में विदेशी भाषा कही जाने वाले अंग्रेजी के महत्व को लेकर बहस छिड़ी रहती है। लेकिन आज भी देश में बहुत अच्छी तनख्वाह वाली कोई नौकरी नहीं है जिसमें अंग्रेजी जानना जरूरी न हो। अंग्रेजी को सामाजिक समावेश की भाषा नहीं मानने वालों की कमी नहीं है लेकिन 1991 में उदारीकरण की शुरुआत के बाद देश में काफी कुछ बदला है। अंग्रेजी भाषा को लेकर कुछ शंकाएं कम हुई हैं तो इसके महत्व को स्वीकार करने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
बंद हो रहे हैं सरकारी स्कूल
गांव-गांव में खुलने वाले अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और शहरों में अंग्रेजी भाषा सिखाने वाले कोचिंग सेंटरों की संख्या देखकर यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि भारतीय बेहतर भविष्य के लिए अंग्रेजी की अहमियत को स्वीकार कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश से काम की तलाश में मुंबई आए मोहम्मद यासिर भी अंग्रेजी कोचिंग के सहारे अपने करियर को नई उंचाई देने की कोशिश कर रहे हैं। यासिर की तरह अंग्रेजी कोचिंग लेने वाली रूपा जाधव कहती हैं कि अंग्रेजी भाषा में दक्षता से आत्मविश्वास मे वृद्धि हुई है। अकेले मुंबई शहर में अंग्रेजी कोचिंग सेंटरों की संख्या हजारों में है।
नवी मुंबई के एक नामी अंग्रेजी माध्यम स्कूल मे पढ़ा चुकीं रितु द्विवेदी अंग्रेजी भाषा के महत्व को स्वीकार करते हुए कहती हैं, 'अंग्रेजी के ज्ञान से पहचान और कामयाबी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।' उनके अनुसार निर्धन से निर्धन परिवार भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में भेजना चाहता है।
घरेलू नौकरानी का काम करने वाली संजू यादव ने अपने चार वर्षीय बेटे का दाखिला अंग्रेजी मीडियम स्कूल में कराया है। उनको भी भरोसा है कि सरकारी या मराठी भाषी स्कूल से बेहतर अंग्रेजी भाषी स्कूल हैं। हिंदी और क्षेत्रीय भाषा के सैकड़ों स्कूल हर साल बंद हो रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार ने कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद करने का फैसला लिया है। राज्य भर में सैकड़ों ऐसे स्कूल हैं जहां छात्र संख्या 10 या दस से भी कम है। यह स्थिति सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों की उपेक्षा को दिखाती है।
रोजगार के अवसरों पर प्रभाव
भारत के बहुलतावादी समाज में एक दूसरे की संस्कृति और मूल्यों को समझने में भी अंग्रेजी भाषा का महत्व है। देश के कई राज्यों की अपनी भाषा है और वहां का कामकाज स्थानीय भाषा में ही होता है। अलग अलग भाषाओँ को बोलने वाले भारतीय समाज में अंग्रेजी अभी भी सेतु का काम कर रही है। वैश्वीकरण के दौर में दुनिया के साथ कदमताल करने के लिए अंग्रेजी भाषा ज्ञान को अपनाने के लिए आज का युवा संकोच नहीं करता।
रोजगार की भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ा है। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर ऋषि दत्त कहते हैं, 'हिंदी भाषा में हुई शिक्षा के कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।' आज का युवा वैश्विक मंच पर अपनी श्रेष्ठता साबित करने को बेकरार है और वह रोजगार की संभावना को बढ़ाने में अंग्रेजी भाषा ज्ञान को मददगार मानता है।
रिपोर्ट विश्वरत्न श्रीवास्तव