सांकेतिक चित्र
अरबों यूरो यानी खरबों रुपये के मूल्य वाली गंभीर रूप से लुप्तप्राय हो चली ईल मछली की तस्करी साल दर साल यूरोप से जारी है। ईल संरक्षण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता इसे "धरती का सबसे बड़ा वन्यजीव अपराध" बता रहे हैं।
यूरोपीय ईल के ज्यादातर खरीदार चीन और जापान जैसे देशों में हैं, जो इन्हें खाने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। यूरोपीय ईल (अंगीला अंगीला) की तादाद में पिछले तीन दशकों में करीब 90 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। उनके निवास स्थान यानी गीली जमीन को विकसित कर इंसान ने उसे अपने इस्तेमाल में ले लिया।
दूसरी ओर, नदियों में खा पीकर अपनी आबादी बढ़ाने वाली इन मछलियों का वह आवास भी इंसानी गतिविधियों के कारण छिन गया है। बाकी बची ईलों पर भी तस्करों की बुरी नजर बनी रहती हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी अच्छी कीमत मिलती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईल तस्करी के धंधे में लगे ऐसे आपराधिक गैंग उसे पूरी तरह विलुप्त करा सकते हैं।
तमाम चेतावनियों के बावजूद अब भी हर साल सैकड़ों टन ईल मछलियां पकड़ी जा रही हैं। मछली पकड़ने में यूरोप में सबसे आगे खड़े फ्रांस में तो अब यह मुद्दा राजनीतिक आयाम ले चुका है। इसे साइट्स इंटरनेशनल कन्वेंशन में शामिल किया गया है, जिसमें सभी खतरे में पड़ी प्रजातियों को रखा जाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर इनके शिकार के लिए एक कोटा तय किया जाता है। एशियाई देशों में खास व्यंजन और सेक्स की क्षमता बढ़ाने वाले भोजन के तौर पर देखे जाने के कारण इसकी मांग आसमान छू रही है। फ्रांस की राष्ट्रीय जैवविविधता एजेंसी के मिशेल विग्नाड बताते हैं, "समस्या यह है कि हम ईयू के बाहर ईल को कानूनी तौर पर निर्यात नहीं कर सकते। और वहां एशिया में उसके दाम एक अलग स्तर पर पहुंच गए हैं।"
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का कहना है कि साल 2016 में केवल चीन में ही करीब ढाई लाख टन ईल की खपत हुई, जहां इसे खुशकिस्मती और फर्टिलिटी से जोड़ कर देखा जाता है। वहीं जापान और यूरोपीय देशों में इससे काफी कम मात्रा की खपत है। ईयू की कानून और व्यवस्था एजेंसी यूरोपोल का अंदाजा है कि हर साल यहां से 100 टन बेबी ईल की तस्करी हो रही है।
इन्हें ग्लास ईल भी कहा जाता है क्योंकि इनकी त्वचा से शरीर के भीतर दिखता है। संख्या में यह करीब 32 करोड़ मछलियां हैं। यूरोपोल के प्रवक्ता ने बताया, "ग्लास ईल की तस्करी में पर्यावरण अपराध, स्मगलिंग, धोखाधड़ी, टैक्स चोरी और काले धन से जुड़े अपराध बनते हैं।"
पश्चिमी यूरोप में ज्यादातर इन्हें जिंदा पकड़ा जाता है फिर वैन या बड़े भारवाहक ट्रकों में लाद कर इन्हें पूरब की ओर रवाना करते हैं। अकसर इन्हें किसी अन्य सामान्य मछली के नाम और कागजात के साथ भेजा जाता है और इस तरह ईल तस्कर पुलिस और संरक्षणकर्ताओं से बच निकलते हैं।
कुछ आपराधिक गुट इन्हें सूटकेस में रख कर भी हवाई यात्रा कर एशियाई देशों में पहुंच जाते हैं। एक बैग में करीब 50,000 तक ईल मछलियां रखी जा सकती हैं। फिर एशिया में इन्हें खास फार्म में ले जाकर इनके वयस्क होने तक रखा जाता है। यह डेढ़ मीटर तक लंबी हो सकती हैं और हर मछली 10 यूरो या करीब 800 रुपये के भाव से बेची जाती है। सस्टेनेबल ईल ग्रुप के अध्यक्ष एन्ड्रू कर कहते हैं, "इन्हें किसी भी दाम पर बेचा जा सकता है। लेकिन कुछ मिलाकर कई अरबों का मामला है। कीमत के हिसाब से यह धरती का सबसे बड़ा वाइल्ड लाइफ अपराध है।"
यूरोपीय ईल का जीवन चक्र सरगासो सागर में शुरु होता है और फिर अंडे पानी के बहाव के साथ एटलांटिक पार कर यूरोप के फीडिंग ग्राउंड तक पहुंचते हैं। इस यात्रा में उन्हें करीब दो साल लग जाते हैं। बेबी ईल तैरते हुए फिर नदियों में पहुंच जाती है, जहां वे 25 साल तक की उम्र जी सकती है। फिर प्रजनन और अंत में देह त्यागने के लिए वह करीब साढ़े छह हजार किलोमीटर की यात्रा कर वापस कैरेबियन पहुंच जाती है।
जीवनचक्र के हर चरण पर इन्हें इंसानों और मानव गतिविधियों के कारण खतरा रहता है। ऐसे में फ्रांस जैसे देश में ईल पकड़ने का राष्ट्रीय कोटा 60 टन प्रति वर्ष का है, जिसे विशेषज्ञ काफी ऊंचा मानते हैं। दूसरी तरफ ईल तस्करी के लिए जुर्माने और दंड भी बाकी तस्करी अपराधों के मुकाबले काफी हल्के हैं। ऐसे में ईलों को मिटने से बचाने के लिए इन सब स्तरों पर सख्ती बरते जाने की जरूरत है।
आरपी/आईबी (एएफपी)