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Written By DW
Last Modified: गुरुवार, 21 अप्रैल 2022 (10:09 IST)

किसानों को समृद्ध और शहरों को साफ रखेगा गोबर

किसानों को समृद्ध और शहरों को साफ रखेगा गोबर - cow dung will keep farmers prosperous and cities clean
भारत में ऊर्जा का एक नया स्रोत तेजी से उभर रहा है, जो स्मॉग से कराहते शहरों को मुक्ति दिलाने का भी दावा करता है।भारत के गरीब किसान तो बहुत पहले से ही इसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं गाय के गोबर की।

भारत की हिंदू संस्कृति में पवित्र और सम्मानित गाय ग्रामीण इलाकों में जीवन रेखा का काम करती आई है। गांव के घरों में गाय के गोबर को सुखाकर बनाया जाने वाला उपला पारंपरिक चूल्हों को आंच देता रहा है। सरकार ने सब्सिडी वाले रसोई गैस के जरिए इसे धीरे-धीरे हटाने के अभियान चलाए, लेकिन फिर भी यह पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।

मध्य प्रदेश में इंदौर के बाहरी इलाके में बसे गांव अब यही गोबर शहरों को देकर अच्छे कमा रहे हैं। शहर में इस गोबर की मदद से बिजली पैदा करने का एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ है। किसान सुरेश सिसोदिया बताते हैं, हमारे पास बहुत अच्छी क्वालिटी का गोबर है और हम इसे साफ रखते हैं, ताकि इसकी अच्छी कीमत मिल सके

एक ट्रक गोबर की कीमत 18000 रुपए
46 साल के सिसोदिया ने बताया कि उन्होंने तकरीबन एक दर्जन ट्रक ताजा गोबर बेचा है। इसमें हर ट्रक के लिए उन्हें तकरीबन 18000 रुपए मिले। यह भारत में किसी परिवार की औसत मासिक आमदनी से कहीं ज्यादा है। सिसोदिया के फार्म में 50 मवेशी हैं। पहले वो खाद के रूप में गोबर बेचकर कभी-कभी ही कुछ पैसे कमाते थे। हालांकि अब उन्हें नियमित कमाई का एक भरोसेमंद जरिया मिल गया है।

सिसोदिया ने बताया, किसान इसे 6 या 12 महीने में एक बार लेकर जाते थे, लेकिन प्लांट हमें एक नियमित आय दे सकता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि हर तीन हफ्ते में उनके यहां एक ट्रक गोबर जमा हो जाता है।

भारत सरकार की गोबर्धन योजना
उनके परिवार को भारत सरकार की 'गोबर्धन' योजना का लाभ मिला है। इसी साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंदौर में बायोगैस के प्लांट का उद्घाटन किया। सिसोदिया के मवेशियों का गोबर प्लांट में ले जाया जाता है, जहां इसे घरेलू कचरे के साथ मिलाकर मीथेन गैस बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। बाद में बचा हुआ कार्बनिक कचरा खाद के रूप में इस्तेमाल होता है।

यह संयंत्र जब अपनी पूरी क्षमता से काम करने लगेगा तो यहां हर दिन 500 टन कचरे का इस्तेमाल होगा। इसमें 25 टन गोबर भी होगा। इसके जरिए शहर के सार्वजनिक परिवहन को ऊर्जा देने के बाद भी बहुत सारी बिजली बच जाएगी। प्लांट के निदेशक नितेश कुमार त्रिपाठी का कहना है, आधी ऊर्जा से इंदौर की बसें चलेंगी और आधी उद्योगों को बेची जाएगी।

गोबर्धन पायलट योजना को शुरूआत में कई तरह की दिक्कतें हुईं। इनमें गांव की खराब सड़कों के कारण प्लांट तक वहां से गोबर पहुंचाना भी एक था। दूसरी तरफ किसान भी आशंका में थे कि तुरंत अमीर बनाने वाली किसी योजना के तहत कहीं नुकसान न हो जाए। बहुत जांच-पड़ताल करने के साथ ही तुरंत और नियमित भुगतान का भरोसा मिला तो ही उन्होंने करारों पर दस्तखत किए।

75 शहरों में बायोगैस प्लांट की तैयारी
भारत सरकार को इस योजना से बड़ी उम्मीदें हैं। इंदौर में यह संयंत्र शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देशभर में 75 और जगहों पर कचरे से गैस बनाने की बात कही है। भारत के लिए वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों की बहुत जरूरत है।

देश में रहने वाले करीब 1.4 अरब की आबादी की ऊर्जा जरूरतों का लगभग 3 चौथाई हिस्सा अब भी कोयले से आता है। देश के ज्यादातर शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं और स्मॉग के कारण वहां रहने वालों का दम घुट रहा है। लांसेट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 10 लाख लोग वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के चलते जान गंवाते हैं।

यह परियोजना भारत के हिंदू राष्ट्रवादियों को भी निश्चित रूप से पसंद आएगी। प्रधानमंत्री मोदी भारत के इस वर्ग को खूब लुभाते हैं। मोदी के शासन में 'काउ विजिलांटे' मुसलमानों के मांस कारोबार को बंद कराने की कोशिश में हैं। गाय को मारने के आरोपों में ऐसे लोगों की पिटाई और भीड़ के हाथों मौत के कई मामले बीते सालों में सामने आए हैं।

हालांकि गाय आधारित धार्मिक नीतियों के कुछ अवांछित परिणाम भी हुए हैं। भारत की सड़कों पर आवारा गायों की संख्या बहुत बढ़ गई है। बायोगैस प्रोजेक्ट शुरू होने से ऐसे मवेशियों की हालत सुधर सकती है। लोग तब भी गायों को पालना जारी रखेंगे जब वो बूढ़ी या बेकार हो जाएं। यह अतिरिक्त आमदनी उन्हें पालने का अच्छा बहाना बन सकती है।
- एनआर/आरएस (एएफपी)
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