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चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की केंद्रीय समिति का चौथा पूर्ण अधिवेशन चल रहा है। आला नेता और अधिकारी बंद दरवाजों के पीछे बैठक कर रहे हैं। बैठक का मुख्य एजेंडा अगले पांच साल के लिए देश के सामाजिक और आर्थिक विकास की योजना तैयार करना है।
इस समय चीन की अर्थव्यवस्था कई ढांचागत समस्याओं से जूझ रही है, जिनपर ध्यान देने की जरूरत है। विश्लेषकों का कहना है कि चीन के नीति-निर्माता एक मुश्किल संतुलन बनाने में जुटे हैं। उन्हें एक तरफ उपभोक्ता खर्च बढ़ाना है, और दूसरी ओर उच्च तकनीक वाले उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित कर विकास दर को बनाए रखना है।
दशकों से, दुनिया की इस दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को निर्यात व्यापार और बुनियादी ढांचे के निवेशों से गति मिलती रही है। जबकि, तीसरे स्तंभ यानी घरेलू खपत को नजरअंदाज किया गया है। जैसे-जैसे निर्यात और बुनियादी ढांचे के निवेश पर आधारित विकास की रफ्तार धीमी पड़ रही है, घरेलू खपत को प्रोत्साहित करने की जरूरत बढ़ती जा रही है।
बर्लिन स्थित थिंक टैंक मर्केटर इंस्टिट्यूट ऑफ चाइना स्टडीज (एमईआरआईसीएस) में चीनी मामलों के विश्लेषक अलेक्जेंडर ब्राउन बताते हैं, "चीन में परिवारों और उपभोक्ताओं के बीच गहरी निराशा छाई हुई है। उनका मनोबल इस समय बहुत गिरा हुआ है। फिर भी, मौजूदा भू-राजनीतिक स्थिति और आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को देखते हुए, बीजिंग अपना पैसा मुख्य रूप से औद्योगिक नीति पर खर्च करेगा।"
उच्च तकनीक क्षेत्र का विकास बनाम चीनी परिवारों की मदद
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की तरफ से बीजिंग के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, एडवांस सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी तक पहुंच सुनिश्चित करना। यह तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित रणनीतिक उद्योगों को चलाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
सबसे एडवांस सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण अभी भी मुख्य रूप से एनवीडिया जैसी अमेरिकी कंपनियां करती हैं। चीन के बाजार में प्रोसेसिंग पावर वाली चिप्स की बिक्री पर कभी हरी झंडी, तो कभी लाल झंडी दिखाने की नीति अपनाई जा रही है।
इस लिहाज से चीन के लिए सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है। पिछले हफ्ते, डॉनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर चीन से आयातित सामानों पर तीन अंकों (सैकड़ा पार) में टैरिफ लगाने की धमकी दी, क्योंकि बीजिंग ने संकेत दिया था कि वह रेअर अर्थ मिनरल्स के निर्यात को ज्यादा नियंत्रित कर सकता है।
चेन बो, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के 'ईस्ट एशियन इंस्टिट्यूट' में सीनियर रिसर्च फेलो हैं। उन्होंने समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' को बताया कि वॉशिंगटन लगातार अमेरिका के नेतृत्व वाले हाई-टेक ईकोसिस्टम से चीन को अलग करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में बीजिंग के लिए भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, अर्थव्यवस्था से जुड़ी संरचनात्मक समस्याओं से कहीं ज्यादा चिंता का विषय है।
चेन ने कहा कि 23 अक्टूबर को खत्म होने वाले चौथे पूर्ण सत्र के बाद जारी होने वाले नीतिगत दस्तावेज में 'उच्च-तकनीकी शोध और औद्योगिक विकास के लिए दी जाने वाली मदद पर जोर दिया जाएगा।' उन्होंने यह भी कहा कि चीन के हार्ड पावर, यानी सैन्य और आर्थिक शक्ति के मामले में निर्माण और उत्पादन अभी भी 'सर्वोच्च प्राथमिकता' है। चेन के मुताबिक, "जब संघर्ष होता है तो आखिरकार मैन्यूफैक्चरिंग ही मायने रखती है, सेवाएं नहीं।"
हालांकि, सरकारी फंड से उच्च तकनीक उद्योगों के विकास के लिए मदद करने का मतलब यह होगा कि उपभोक्ता खर्च को प्रोत्साहित करने के लिए कम संसाधन बचेंगे।
भविष्य के लिए शी जिनपिंग का नजरिया
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसी साल जुलाई में अपने एक भाषण में जोर देकर कहा कि दुनिया "इस समय सदी के सबसे बड़े बदलावों से गुजर रही है। वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति तथा प्रमुख शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा लगातार एक-दूसरे से जुड़ती जा रही है।"
राष्ट्रपति जिनपिंग ने अपनी वह अपील भी दोहराई की विज्ञान और तकनीकी विकास में चीन में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
चीन पहले ही इलेक्ट्रिक वाहन और अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर सबसे आगे है। सेमीकंडक्टर और व्यावसायिक विमानन जैसे कुछेक क्षेत्रों को छोड़ दें, तो चीन ने कमोबेश अपनी समूची आपूर्ति शृंखला को अपने ही यहां विकसित करने में कामयाबी पाई है।
अपनी आर्थिक संप्रभुता को ज्यादा मजबूती देने और कुछेक क्षेत्रों में जहां उसका दबदबा नहीं है, उनमें अपनी निर्भरता घटाने के लिए चीन लगातार हाई-टेक उद्योगों में निवेश बढ़ा रहा है।
उपभोग को कैसे बढ़ा सकता है चीन?
चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था की बुनियादी और संरचनात्मक समस्याओं को हल करने की कोशिशें पूरी तरह नहीं छोड़ी हैं। वह लगातार इनपर काम कर रहा है। सितंबर में 'पीपल्स कांग्रेस' के एक सत्र के दौरान इस बात पर विमर्श किया गया कि निजी परिवारों की खर्च करने लायक आमदनी और अर्थव्यवस्था में उपभोग की हिस्सेदारी कैसे बढ़ाई जाए।
फिलहाल चीन में निजी खपत, आर्थिक उत्पादन का लगभग 40 फीसदी है। यह पश्चिमी देशों में होने वाले 60 फीसदी खपत से काफी कम है। अमेरिका में तो निजी खपत आर्थिक उत्पादन के 70 फीसदी तक पहुंच गया है।
कुछ निजी थिंक टैंकों ने 10 वर्षों के भीतर निजी खपत बढ़ाकर 50 फीसदी तक ले जाने का प्रस्ताव दिया है। इसे देखते हुए हालिया महीनों में चीन ने कई उपायों की घोषणा की है। जैसे उपभोक्ता सब्सिडी, पेंशन में बढ़ोतरी और बच्चों की देखभाल के लिए भत्ता। इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में भी कुछ सुधार किए गए हैं।
ब्राउन, मरकेटर इंस्टिट्यूट ऑफ चाइना स्टडीज (एमईआरआईसीएस) में एक विश्लेषक हैं। उनका मानना है कि ये सभी कदम जनसांख्यिकीय बदलाव, अतिरिक्त उत्पादन क्षमता और घटते निर्यात जैसी समस्याओं के कारण 'मजबूरी में' उठाए गए हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरा मानना है कि अगले पांच साल में इस तरह के कदम उठाए जाते रहेंगे, भले ही उनकी संख्या ज्यादा न हो।"
मैक्वेरी ग्रुप में मुख्य चीनी अर्थशास्त्री लैरी हू ने रॉयटर्स से बातचीत में उम्मीद जताई कि जब यह साफ तौर पर जाहिर हो जाएगा कि बाहरी मांग में इतनी कमी आ गई है कि विकास लक्ष्यों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, तो चीन घरेलू खपत को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाएगा।
लैरी हू ने कहा, "अगर आप सिर्फ बाहरी मांग पर निर्भर हैं और घरेलू मांग सुस्त पड़ जाए, तो इससे बेरोजगारी बढ़ सकती है। अपस्फीति (डीफ्लेशन), यानी कीमतों में गिरावट आ सकती है। अगर एक-दो साल तक ऐसा चलता रहा, तो ज्यादा चिंता की बात नहीं है। लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिति बनी रही, तो निश्चित रूप से एक समस्या बन जाएगी।"
घरेलू उपभोग को बढ़ाना आसान और सस्ता काम नहीं है। खासकर ऐसे समय में जब रियल एस्टेट संकट, भारी कर्ज और कम विकास दर के कारण चीन की वित्तीय क्षमता पहले से ही सीमित है।
सिटीग्रुप के मुताबिक, चीनी अर्थव्यवस्था में आपूर्ति और मांग के बीच कायम असंतुलन को पूरी तरह से दूर करने के लिए सरकार को अगले पांच वर्षों में 20 ट्रिलियन युआन का निवेश करना होगा। यह 2024 में चीन के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 15 फीसदी के बराबर होगा।
वहीं, ब्राउन कहते हैं कि फिलहाल इसका मतलब यह है कि चीन अपने संसाधनों का इस्तेमाल उन उद्योगों के लिए करेगा जहां उसे अभी विकास की संभावना दिख रही है। उन्होंने कहा, "चीन मुख्य रूप से उन तकनीकी उद्योगों में अपने संसाधनों का निवेश जारी रखेगा, जहां उसके पास दुनिया का नेतृत्व करने का अवसर है। उसे उम्मीद है कि इन कामयाबियों से बहुत पैसा आएगा। इस पैसे या टैक्स से होने वाली आय का इस्तेमाल पूरी अर्थव्यवस्था के लिए किया जा सकेगा।"