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Written By राम यादव
Last Updated : मंगलवार, 8 जुलाई 2014 (18:32 IST)

कौन बनता है अंतरिक्षयात्री

कौन बनता है अंतरिक्षयात्री -
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भारत की पहली समनाव अंतरिक्ष उड़ान का समय एक बार फिर टल गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 'इसरो' के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने गत अगस्त में बताया कि 2017 से पहले भारत का कोई अंतरिक्षयात्री अंतरिक्ष में नहीं जा सकेगा।

'इसरो' ने यह भी तय किया है कि भारत के भावी अंतरिक्षयात्रियों को प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) देने के लिए बंगलुरु के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास एक अलग प्रशिक्षण केंद्र बनाया जाएगा। साथ ही, भारतीय अंतिरिक्षयात्रियों को औपचारिक तौर पर 'व्यौमनॉट' कहा जाएगा। यह शब्द संस्कृत के 'व्यौम' और अंग्रेजी के 'नॉट' के मेल से बना है।

'इसरो' का कहना है कि प्रशिक्षण प्रक्रिया के आरंभ में 200 प्रत्याशियों में से चार का अंतिम प्रशिक्षण के लिए चयन किया जाएगा, जिन में से दो भारत के प्रथम परिक्रमायान में जगह पाएंगे। उन के चयन की प्रक्रिया और शर्तों को अभी तय नहीं किया गया है।

संभावना यही है कि व्यौमनॉटों की टीम लगभग उन्हीं मानदंडों के अनुसार तैयार की जाएगी, जिन मानदंडों के अनुसार अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण 'नासा' (NASA) और यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण 'एसा' (ESA) के प्रशिक्षार्थियों का चयन एवं प्रशिक्षण होता है। 'नासा' और 'एसा' की चयन प्रक्रियाओं और उनके प्रशिक्षण कार्यक्रमों में काफी समानताएं हैं। उनके अंतररिक्षयात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS पर आते-जाते रहते हैं। वहां वे रूसी अंतरिक्षयात्रियों के साथ मिल कर काम करते हैं।

यूरोपीय अंतरिक्षयात्री प्रशिक्षण केंद्र और...


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यूरोपीय अंतरिक्षयात्री प्रशिक्षण केंद्र : यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण 'एसा' का अंतरिक्षयात्री प्रशिक्षण केंद्र जर्मनी में कोलोन शहर के उसी परिसर में है, जहां जर्मन अंतरिक्ष अधिकरण 'डीएलआर' का मुख्यालय एवं उसके विभिन्न शोध संस्थान भी हैं। कोलोन हवाई अड्डे के पास 55 हेक्टर भूमि पर फैले इस हरे-भरे परिसर के द्वार हर दो वर्ष पर, सितंबर महीने के किसी एक रविवार के दिन, आम जनता के लिए खोल दिए जाते हैं।

इस दिन बड़े-बूढ़ों से लेकर अबोध बच्चों तक हजारों की संख्या में लोग अंतरिक्षयात्रियों की प्रशिक्षण सुविधाओं और शोध-प्रयोगशालाओं को देखने और नए-पुराने अंतरिक्षयात्रियों से बातें करने के लिए टूट पड़ते हैं। ताकि अधिक से अधिक लोग 'अंतरिक्षयात्रा दिवस' कहलाने वाले इस दिन का लाभ उठा सकें, कोलोन हवाई अड्डे और पास के उपनगरीय रेलवे स्टेशनों से 'डीएलआर' परिसर तक आने-जाने के लिए पूरे दिन मुफ्त बस सेवा भी चलती है। इस बार 22 सितंबर को 30 हज़ार लोगों ने इस सुविधा का लाभ उठाया।

जर्मनी का 'अंतरिक्षयात्रा दिवस' : खुले दरवाजों वाले 'अंतरिक्षयात्रा दिवस' का उद्देश्य होता है जनसाधरण को दिखाना-बताना कि जर्मन अंतरिक्ष अधिकरण क्या कर रहा है? क्यों कर रहा है? अंतरिक्ष अनुसंधान कितनें जटिल हैं और उनके क्या लाभ हैं? एक उद्देश्य बच्चों और छात्रों में अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति जिज्ञासा जगाना और उन्हें विज्ञान एवं इंजीनियरिंग से जुड़े विषय पढ़ने के लिए प्रेरित करना भी है।

परमशून्य यानी क्या, अगले पन्ने पर...


युवाओं में यह जानने की भारी रुचि देखी जा सकती थी कि परमशून्य यानी ऋण 173.4 डिग्री सेल्ज़ियस के निकटतम तापमान वाली यूरोप की सबसे ठंडी क्रायोजेनिक विंड-टनल (अतिप्रशीतित वायुधारा सुरंग) किस तरह काम करती है।

मार्च 2004 में प्रक्षेपित और 2014 के अंत में 67 करोड़ 50 लाख किलोमीटर दूर के एक धूमकेतु (कॉमेट) के पास पहुंच रहे 'रोजेटा' अन्वेषण यान को कोलोन में बैठ कर किस तरह नियंत्रित किया जा रहा है। या शरीर पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल को छः गुणे तक बढ़ा देने वाला सेंट्रीफ्यूज (केंद्रापसारी यंत्र) भला कैसा दिखाई पड़ता है। तेजी से वृत्ताकार घूमने वाले इस यंत्र के द्वारा भावी अंतरिक्षयात्रियों को अपने ऊपर उस भारी खिंचाव को झेलने के लिए तैयार किया जाता है, जो प्रक्षेपण के समय रॉकेट की गति बढ़ने के साथ कई गुना बढ़ जाता है।

जब वजन कई गुना बढ़ जाता है : जर्मन अंतरिक्ष अधिकरण 'डीएलआर' के एसएएचसी (SAHC/ शॉर्ट आर्म ह्यूमन सेंट्रीफ्यूज) की घूर्णन गति प्रतिमिनट 45 फेरे हो जाने पर व्यक्ति को अपना भार छः गुना बढ़ गया महसूस होता है।
इस अवस्था में शरीर के भीतरी अंग नीचे की तरफ खिंचने लगते हैं। रक्त पैरों में जमा होने लगता है। हृदय रक्त को भलीभांति पंप नहीं कर पाता। मस्तिष्क की दिशा में रक्तसंचार कम हो जाने से उसे ऑक्सीजन मिलना भी कम हो जाता है। व्यक्ति का शारीरिक संतुलन खो जाता है और उसे अल्पकालिक बेहोशी भी आ सकती है। यान को अंतरिक्ष में पहुंचाने वाले रॉकेट के प्रक्षेपण के समय पैदा होने वाली यह अवस्था सबसे खतरनाक अवस्थाओं में गिनी जाती है।

स्वाभाविक है जब अंतरिक्षयात्रा की बात हो रही हो, तो लोग यह भी जानना चाहते हैं कि कोई व्यक्ति अंतरिक्षयात्री बनता कैसे है? क्या योग्यताएं होनी चाहियें? क्या शारीरिक और मानसिक क्षमताएं होनी चाहियें? ट्रेनिंग किस तरह की होती है और कितनी लंबी होती है? इन प्रश्नों के उत्तर दिए यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण 'एसा' के कोलोन स्थित 'अंतरिक्षयात्री प्रशिक्षण केंद्र' के निदेशक डॉ. हान्स बोलेंडर ने।

परीक्षा और प्रशिक्षण हेतु आवेदन की शर्तें...


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पांच पुरुषों और एक महिला को मिला कर बनी भावी अंतरिक्षयात्रियों वाली 'एसा' की नई टीम के चयन और प्रशिक्षण कार्यक्रम का उदाहरण देते हुए डॉ. बोलेंडर ने कई ऐसी बाते बताईं, जो अंतरिक्षयात्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले भारतीय नागरिकों के लिए भी काम की हो सकती हैं।

प्रशिक्षण हेतु आवेदन की शर्तें : डॉ. बोलेंडर ने बताया कि इस नई टीम के गठन के लिए आवेदन 2008 में आमंत्रित किए गए थे। 'एसा' के सभी 17 यूरोपीय सदस्य देशों के नागरिकों से मिले आवेदनों में से जिन 8413 को गंभीरता से लिया गया, उन में से 1430 महिलाओं के आवेदन भी थे।

इन सभी आवेदकों के बीच से 918 को पहले चरण की मनोवैज्ञानिक परीक्षा के लिए और केवल 192 को दूसरे चरण की मनोवैज्ञानिक परीक्षा के लिए भी बुलाया गया। अंत में जिन छः लोगों को चुना गया, उनके नाम मई 2009 में घोषित किए गए। इन छः में से जर्मनी के अलेक्सांदर गेर्स्ट (चित्र में बांए से दूसरे) का 2014 में अंतरिक्ष में जाना तय हुआ है, बाकी की बारी बाद में आएगी।

यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण 'एसा' के नियमों के अनुसार दो प्रकार के लोगों के आवेदनों पर विचार किया जाता हैः- एक तो वे हैं, जिन के पास भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, भूविज्ञान, इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस या गणित जैसे किसी विषय की मास्टर (MSc, ME) डिग्री या डॉक्टर की उपाधि है; और दूसरे वे हैं, जिन के पास इन्हीं विषयों में कम से कम विश्वाद्यालय-स्नातक (बैचलर) की डिग्री है और अलग-अलग प्रकार के विमान उड़ाने का कम से कम एक हज़ार घंटे का अनुभव भी है।

साथ ही यह अपेक्षा भी की जाती है कि हर आवेदक के पास अपने विषय के क्षेत्र में कम से कम तीन साल तक काम करने का अनुभव भी हो। आंग्रेजी पर पूरी तरह अधिकार होना अनिवार्य है, जबकि रूसी सहित किसी और विदेशी भाषा का ज्ञान वांछित है। आवेदन के साथ इन शैक्षिक योग्यताओं को प्रमाणित करते हुए अपने देश के विमानन विभाग द्वारा अधिकृत किसी डॉक्टर से अपने पूरी तरह स्वस्थ होने का प्रमाणपत्र भी देना पड़ता है।

कैसे होती है इसकी 'परीक्षा' और प्रशिक्षण की तैयारी...


गहन परीक्षा : जिन आवेदकों को आगे की जांच-परख के लिए चुना जाता है, उन के स्वास्थ्य, शारीरिक क्षमता, मानसिक दशा, बौद्धिक कुशलता और आचार-व्यवहार का कम से कम 10 दिन चलने वाले एक लंबे कार्यक्रम के द्वारा गहन विश्लेषण किया जाता है।

उद्देश्य होता है यह जानना-पहचानना कि यदि आवेदक को अंतरिक्षयात्री बनने के लिए चुना गया, तो क्या वह बाद के लंबे प्रशिक्षणकाल के तनावों और वास्तविक अंतरिक्षयात्रा के समय की आकस्मिक समस्याओं के साथ ठंडे दिमाग़ से निपट पाएगा।

'एसा' द्वारा चुने गए प्रत्याशियों को अंतरिक्ष में जाने से पहले पृथ्वी पर रह कर ही कई वर्षों तक अपना भावी काम सीखना पड़ता है। यह प्रशिक्षण उन्हें जर्मनी के कोलोन शहर में स्थित जिस प्रशिक्षण केंद्र से मिलता है, उस के निदेशक डॉ. हान्स बोलेंडर ने उसकी रूपरेखा समझाने के लिए जर्मनी के अगले अंतरिक्षयात्री 36 वर्षीय अलेक्सांदर गेर्स्ट का उदाहरण दिया।

उन्होंने बताया कि गेर्स्ट 'मई 2014 में छः महीनों के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS पर जाएंगे। वे पांच साल से ट्रेनिंग में हैं। ISS 180 मीटर लंबा, 450 टन भारी और 1200 घनमीटर जगह वाला एक ऐसा ढांचा है, जो पृथ्वी से औसतन 350 किलोमीटर की दूरी पर रह कर 28 000 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से हर 90 मिनट में उसकी एक परिक्रमा पूरी करता है। वह अंतरिक्षयात्रियों का घर भी है और उन की वैज्ञानिक प्रयोगशाला भी है।'

तीन चरणीय प्रशिक्षण : डॉ. बोलेंडर का कहना था कि यूरोप का क्योंकि अपना कोई अलग अंतरिक्ष स्टेशन या परिक्रमा यान नहीं है, इसलिए उसके अंतरिक्षयात्रियों को मुख्य रूप से ISS पर रहने और प्रयोग आदि करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण तीन चरणों में पूरा होता हैः आधारभूत (बेसिक) प्रशिक्षण, कार्यभार-पूर्व (प्री-एसाइनमेन्ट) प्रशिक्षण और स-कार्यभार (एसाइनमेन्ट) प्रशिक्षण। कुल 110 ऐसे विशेषज्ञ, जो अधिकतर स्वयं भी अतीत में अंतरिक्षयात्री रह चुके हैं या फिर डॉक्टर और इंजीनियर हैं, प्रशिक्षण देने का काम करते हैं।

18 महीने के आधारभूत प्रशिक्षण वाले पहले चरण में भावी अंतरिक्षयात्रियों को पृथ्वी पर रहते हुए ही अंतरिक्ष में पहने जाने वाले प्रेशरसूट को पहनने-उतारने, पानी में गोताखोरी द्वारा भारहीनता जैसी स्थिति में विभिन्न उपकरणों और औजारों का इस्तेमाल करने, तेजी से घूमने वाले सेंट्रीफ्यूज के माध्यम से रॉकेट के प्रक्षेपण के समय पैदा होने वाले भीषण शारीरिक दबाव को सहने, उड़ान नियंक्षण केंद्र और अंतरिक्ष स्टेशन की कार्यपद्धति तथा कंप्यूटरों आदि से परिचित होने, अंतरिक्ष स्टेशन पर की भारहीनता में सोने-जागने, खाने-पीने, नहाने-धोने और शारीरिक व्यायाम करने जैसे कामों से परिचित कराया जाता है।

उल्लेखनीय है कि नहाने के नाम पर अंतरिक्षयात्रियों को गीले तौलिये से अपने शरीर को पोंछ कर संतोष कर लेना पड़ता है और खाने के नाम पर डिब्बाबंद भोजन से काम चलाना पड़ता है।

प्रशिक्षण के दूसरे चरण में अंतरिक्ष की भारहीनता का लाभ उठा कर किए जा सकने वाले वैज्ञानिक प्रयोगों, उन से संबंधित पदार्थों और उपकरणों, खतरों, दुर्घटनाओं व सावधानियों तथा अंतरिक्ष में रहते हुए पृथ्वी के अवलोकन जैसे कामों को सिखाया जाता है। तीसरे चरण में, अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन-नियंत्रण, देख-भाल और रख-रखाव, खुले अंतरिक्ष में जा कर अंतरिक्ष स्टेशन की मरम्मत आदि करने, रोबोट से काम लेने और अंतरिक्ष स्टेशन के लिए रसदपूर्ति करने वाले सोयूज, प्रोग्रेस व एटीवी कहलाने वाले स्वचालित परिवहन यान की विशेषताओं से परिचित कराया जाता है।

प्रशिक्षण के लिए जाना होता है कई देशों में....


भारहीनता के हैं अपने नियम : डॉ. बोलेंडर का कहना था कि अंतरिक्ष की भारहीनता में वे सारे नियम भूल जाने पाड़ते हैं, जो पृथ्वी पर हमने जीवन भर सीखे होते हैं। उदाहरण के लिए, 'पेंचकस से वहां यदि किसी पेंच (स्क्रू) को कसना हो, तो पहले अपने आप को किसी जगह इस तरह बांधना होगा कि पेचकस घुमाते समय उसके साथ खुद भी न घूमने लगें।

अंतरिक्ष स्टेशन पर हर 45 मिनट पर सूर्योदय और सूर्यास्त होता है। सोते समय भी अपने आप को बिस्तर से बांध कर रखना पड़ता है, वर्ना आप कहीं, बिस्तर कहीं।' 18 महीने के आधारभूत प्रशिक्षण के बाद परीक्षा पास करनी पड़ती है। इस परीक्षा के बाद ही प्रशिक्षार्थी अंतरिक्षयात्रा का उम्मीदवार बन सकता है और अगले चरण का प्रशिक्षण पा सकता है। सारे प्रशिक्षणकाल के दौरान बीच-बीच में पिछली बातों को दोहराया जाता है, ताकि वे भूल न जाएं।

अंतरिक्ष की एकांतिकता, जगह की तंगी और वहां आवश्यक स्वच्छता के मनोवैज्ञानिक अभ्यास के लिए प्रशिक्षार्थियों को इटली के सार्डीनिया द्वीप पर की एक एकांत गुफ़ा में कुछ दिन बिताने पड़ते हैं। रोबोट मशीनों की ट्रेनिंग के लिए उन्हें कैनडा में मॉन्ट्रियाल और अंतरिक्ष स्टेशन के कर्मीदल (क्रू) की ढाई साल चलने वाली ट्रेनिंग के लिए उन सब देशों में जाना पड़ता है, जहां के नागरिक उनके साथी होंगे।

अलग-अलग देशों में होता है जाना : उद्देश्य है, हर प्रशिक्षार्थी को अपने साथियों की रहन-सहन, आदतों और मानसिकताओं से परिचित कराना, ताकि अंतरिक्ष स्टेशन पर साथ-साथ काम करते समय कोई ग़लतफ़हमी न हो और किसी लड़ाई-झगडों की नौबत न आए। इस तरह 'एसा' के प्रशिक्षार्थी केवल पशचिमी यूरोप के देशों से ही परिचित नहीं होते, रूस, अमेरिका या जापान के भी चक्कर लगाते हैं। हर जगह एक-एक सप्ताह रह कर वे अंतरिक्ष स्टेशन के संचालन, रख-रखाव, मरम्मत और रसद यानों की डॉकिंग (संयोजन) से संबंधित कामों का अभ्यास करते हैं।

भारत के अंतरिक्षयात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर होने वाले कार्यों का प्रशिक्षण देने की िलहाल जरूरत नहीं है। तब भी, उन्हें जो प्रशिक्षण दिया जएगा, वह ऐसा होना चाहिये कि भविष्य में कभी वे भी इस स्टेशन या उसके बाद के किसी स्टेशन पर अन्य देशों के अंतरिक्षयात्रियों के साथ मिल कर काम कर सकें।

भारत के लिए स्वयं ऐसा कोई स्टेशन अंतरिक्ष में बना सकना इतना मंहगा और दुस्साध्य होगा, कि उसकी कल्पना करने का ही साहस नहीं होता। स्वयं कई भारतीय वैज्ञानिक भी संदेह जताते हैं कि भारत 2020 से पहले अपने 'व्यौमनॉट' अंतरिक्ष में भेज भी पाएगा। भारत इस दौड़ में भी चीन से काफ़ी पिछड़ गया है।