हाइकू रचना : रेल हादसा...
हाइकू 54
मौत का पंजा
झपटकर उड़ा
जीवन हंसा।
काली थी रात
मौत की बरसात
घुप्प अंधेरा।
चीखते जिस्म
लहूलुहान बच्चे
कटे शरीर।
जीवन वृत्त
रह गया अधूरा
टूटे सपने।
काल कहर
बुझ गईं ज्योतियां
अंधेरे घर।
नन्ही-सी बेटी
कब आएंगे पापा
देखती राह।
टूटे सहारे
छूटे सब अपने
दर्द के घेरे।
टूटती रेलें
मौत की सियासत
लाशों का ढेर।