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हिन्दी कविता : बदला मौसम

हिन्दी कविता : बदला मौसम - Poetry In Nature
चिड़िया
अब नहीं लाती दाना
घोंसले में छिपे
बच्चों के लिए
जो, अब लगने लगे हैं
उसे पराए से।
 
वह सोचती है कि
बच्चे भी सोचते हैं
ऐसा ही कुछ
शायद इसीलिए
वे अब खुद चुगते हैं दाना
कुछ भी नहीं कहते उससे।
 
और चिड़िया
कोशिश नहीं करती
दाना उठाने की
जो बच्चों की चोंच से
गिर जाता है बार-बार
घोंसले में...
क्योंकि परायों के लिए
कोई कुछ नहीं करता।
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