बाल गीत : नदी पार के हरे-भरे तट
गर्मी बहुत तेज है चलते,
मुंडा घाट नहाने।
पापाजी को भैयन, बिन्नू,
लगते रोज मनाने।
किलेघाट का पानी रीता,
रेत बची है बाकी।
उसी रेत में गड्ढा करके,
पानी लाती काकी।
घर के लोग वही जल पीते,
अपनी प्यास बुझाने।
गर्मी का मौसम आता तो,
त्राहि-त्राहि मच जाती।
नहीं एक भी बूंद कहीं से,
जल की थी मिल पाती।
मुंडा घाट चली जाती थी,
मुन्नी इसी बहाने।
मुंडाघाट शहर रहली में,
है सुनार का घाट।
जब हम छोटे थे दिखता था,
कितना चौड़ा पाट।
नदी पार के हरे-भरे तट,
लगते बड़े सुहाने।