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बाल गीत : कौआ चाचा

बाल गीत : कौआ चाचा - Crow Poems
कौआ चाचा नहीं आजकल,
तुम छत पर क्यों आते?
कांव-कांव चिल्ला-चिल्लाकर,
हमको नहीं जगाते।
 
कौआ बोला सुनो भतीजे,
शहर नहीं अब भाते।
हवा बहुत जहरीली है,
हम सांस नहीं ले पाते।
 
क्यों न ढेरों पेड़ लगाकर,
हवा शुद्ध करवाते।
ईंधन वाला धुआं मिटाकर,
पर्यावरण बचाते।
 
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