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कविता : चाय गरम, चाय गरम...

कविता : चाय गरम, चाय गरम... - child poem on tea
-विजय शर्मा
 
चाय गरम, चाय गरम,
जिसका नहीं कोई धरम।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
पीते इसको गरम-गरम।
 
कोई इसको कटिंग बुलाता,
कोई कहता कप ऑफ टी।
कहीं पर यह केहवा कहलाती,
और कहीं पर ओलोंगो।
 
मिलती कई रंगों में,
ब्लैक, एल्वो और ग्रीन।
और कई खुशबुओं में,
एप्पल, चॉकलेट और लेमन।
 
आसाम की चाय की है अपनी बात,
मसाला चाय भी होती है खास।
एक बार जो लगे जुबान से,
नहीं जाता फिर इसका स्वाद।
 
खड़े चम्मच की चाय,
बिना चीनी की चाय।
बिना दूध की भी होती है,
हर किसी को प्यारी यह चाय।
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