बालगीत : किससे अब उपचार कराएं...
अब लगती है कथा-कहानी,
है सच्ची पर बात पुरानी।
नदी भरी थी नीले जल से,
झरनों के स्वर थे कल-कल के।
पर्वत, जंगल, हरियाली थी,
सभी ओर बस खुशहाली थी।
वह दिन कैसे वापस आएं,
किससे अब उपचार कराएं।
लोग खुले दिलवाले थे तब,
मन के भोले-भाले थे तब।
जैसे भीतर, वैसे बाहर,
खुशी बांटते मुट्ठी भर-भर।
मन के भीतर द्वेष नहीं था,
घृणा भाव भी शेष नहीं था।
रोते चेहरे फिर हंस पाएं,
किससे अब उपचार कराएं।
बहुत हुई छल-छंद बनावट,
झूठी मुस्कानों की जमघट।
रिश्ते-नाते सिर्फ दिखावा,
हुई जिंदगी एक तमाशा।
पैसे फेंको काम कराओ,
पैसे से ही इज्जत पाओ।
कैसे मिथ्याचार हटाएं,
किससे अब उपचार कराएं।