शुक्रवार, 8 नवंबर 2024
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बाल कविता : महाराजा के घर

बाल कविता : महाराजा के घर - A child poem
Poem on Kids
सुबह-सुबह से सूरज निकला,
खिड़की में से भीतर आया।
 
बोला उठो-उठो अब जल्दी,
क्यों सोए अब तक महाराजा।
 
मैं बोला मैं महाराजा हूं,
तो तुम खिड़की से क्यों आए,
 
चौकीदार खड़ा द्वारे पर,
उसे बताकर क्यों न आएं?
 
आ गए हो चौका बर्तन,
झाड़ू-पोंछा करके जाना।
 
आगे से महाराजा के घर,
बिना इजाजत कभी न आना।