- कैलाश प्रसाद यादव 'सनातन'
चंदा देख रही चंदा में, सजन की सूरत, सजन का प्यार
आज सुहागिन सजी है फिर से, फिर से किए सिंगार।
चंदा ढूंढ़ रही चंदा को, दूर गगन के पार,
निराहार दिन भर से फिर भी, न मांगे संसार,
लंबी उम्र सजन की मांगे, मांगे सच्चा प्यार।
आज सुहागिन सजी है फिर से, फिर से किए सिंगार।
करवा चौथ, पावन गंगा सा, निर्मल जिसकी धार,
जिनके साजन रूठ गए थे, चंदा के संग वे भी लौटे,
लौटा फिर से प्यार।
आज सुहागिन सजी है फिर से, फिर से किए सिंगार।