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Karva Chauth 2020 : मधुर प्यार और अखंड सुहाग का मंगल पर्व- करवा चौथ

Karva Chauth 2020 : मधुर प्यार और अखंड सुहाग का मंगल पर्व- करवा चौथ - Importance of Karva Chauth
-ज्योतिर्विद डॉ. रामकृष्ण डी. तिवारी
 
पति की दीर्घायु और मंगल-कामना हेतु सुहागिन नारियों का यह महान पर्व है। करवा (जल पात्र) द्वारा कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पारण (उपवास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पारण उपवास के बाद का पहला भोजन) करने का विधान होने से इसका नाम करवा चौथ है।
 
करवा चौथ और करक चतुर्थी पर्याय है। चन्द्रोदय तक‍ निर्जल उपवास रखकर पुण्य संचय करना इस पर्व की विधि है। चन्द्र दर्शनोपरांत सास या परिवार में ज्येष्ठ श्रद्धेय नारी को बायना देकर 'सदा सौभाग्यवती भव' का आशीर्वाद लेना व्रत की पहचान है।
 
सुहा‍गिन नारी का पर्व होने के नाते यथासंभव और यथाशक्ति न्यूनाधिक सोलह श्रृंगार से अलंकृत होकर सुहागिन अपने अंत:करण के उल्लास को प्रकट करती है। पति चाहे जैसा हो पर पत्नी इस पर्व को मनाएगी अवश्य। पत्नी का पति के प्रति यह समर्पण दूसरे किसी धर्म या संस्कृति में कहां?
 
पुण्य प्राप्ति के लिए किसी पुण्यतिथि में उपवास करने या किसी उपवास के कर्मानुष्ठान द्वारा पुण्य-संचय करने के संकल्प को व्रत कहते हैं। व्रत और उपवास द्वारा शरीर को तपाना तप है। व्रत धारण कर, उपवास रखकर पति की मंगल कामना सुहागिन का तप है। तप द्वारा सिद्धि प्राप्त करना पुण्य का मार्ग है इसीलिए सुहागिन करवा चौथ का व्रत धारण कर उपवास रखती है।
ब्रह्म मुहूर्त से चन्द्रोदय तक जल-भोजन कुछ भी ग्रहण न करना करवा चौथ का मूल विधान है। वस्तुत: भारतीय पर्वों में विविधता का इन्द्रधनुषीय सौंदर्य है। इस पर्व के मनाने, व्रत रखने, उपवास करने में मायके से खाद्य पदार्थ भेजने, न भेजने आदि की रूढ़िवादी परंपराएं अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्नता के साथ प्रचलित हैं।
 
बायना देने-लेने, करवे का आदान-प्रदान करने, बुजुर्ग महिला से आशीर्वाद लेने-देने की सारी मान्यताएं अलग-अलग क्षेत्रों, जातियों/वर्णों में भले ही भिन्न हों, परंतु सभी का उद्देश्य एक ही है और वह है- पति का मंगल।
 
पश्चिमी सभ्यता में निष्ठा रखने वाली सुहागिनों के लिए यह पर्व एक मार्गदर्शिका है। एक निर्देशिका है। वस्तुत: हिन्दू संस्कृति आदर्शों व श्रेष्ठताओं से परिपूर्ण एक ऐसी संस्कृति है‍ जिसमें पारलौकिकता व आध्यात्मिकता की महत्ता है। चूंकि हिन्दू संस्कृति में पति-पत्नी का संबंध 7 जन्मों का होता है इसीलिए व्रत-उपवास, पूजन-अर्चन इस जन्म-जन्मांतर के संबंध को प्रगाढ़ बनाते हैं।
 
करवा चौथ व्रत पालन के महत्व के बारे में कुछ इस प्रकार से अभिव्यक्ति दी गई है-
 
व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षायाप्नोति दक्षिणाम्।
दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते।
 
अर्थात व्रत से दीक्षा प्राप्त होती है। दीक्षा से दक्षिणा प्राप्त होती है। दक्षिणा से श्रद्धा प्राप्त होती है। श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है।।
 
वस्तुत: पति अपनी पत्नी की श्रद्धा व आस्था देखकर कुछ इस तरह से अभिभूत हो जाता है कि वह पत्नी व बच्चों के प्रति उत्तरदायित्व निर्वाह के लिए कहीं अधिक संकल्पवान व निष्ठावान हो जाता है।
 
हर सुहागिन अन्न-जल का परित्याग कर चांद की छवि दर्पण में देखकर और फिर अपने पति का मुखड़ा देखकर ईश्वर से यही मनौती मांगती है कि दीपक मेरे सुहाग का जलता रहे। कभी चांद तो कभी सूरज बनकर निकलता रहे।
 
हर भारतीय नारी अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं, आदर्शों व परंपराओं पर गर्व करती है।   
 
करवा चौथ पर हर सुहागिन का हृदय अपने पति के लिए लंबी उम्र की दुआ मांगने लगता है। 

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