रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. समाचार
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. danger to crops due to global warming
Written By
Last Updated : बुधवार, 9 मई 2018 (14:17 IST)

ये आंधी-तूफान तो शुरूआत हैं, आने वाली है कयामत

ये आंधी-तूफान तो शुरूआत हैं, आने वाली है कयामत - danger to crops due to global warming
पिछले कुछ सालों में मौसमी परिवर्तन से भारत में कई बड़ी आपदाएं देखने को मिली हैं। एकाएक किसी क्षेत्र विशेष में भारी बरसात, सूखा, भयानक तापमान या बर्फीले तूफान अब लगातार नुकसान कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से होने वाले मौसमी हादसों से केवल जान हानि ही नहीं, आर्थिक नुकसान भी हो रहे हैं। 
आमतौर पर मैदानी इलाकों में गर्मी के महीनों में धूल भरी आंधी चलना आम है लेकिन इस बार 120 किलोमीटर की रफ्तार से इतना शक्तिशाली बवंडर या रेतीला तूफान आया कि सैकड़ों लोग मौत के मुंह में चले जाएं। 
 
हर साल अरबों डॉलर का नुकसान: ग्लोबल वॉर्मिंग या जलवायु परिवर्तन का असर अब साफ दिखाई दे रहा है और इससे लगभग सभी देश प्रभावित हो रहे हैं। 
मौसमी बदलाव से भारत के बारिश के वार्षिक औसत में भी गिरावट दर्ज की गई है। औसत बारिश में 86 मिमी. की कमी आई है। वहीं कुछ क्षेत्रों में भारी वर्षा से बाढ़ की घटनाओं में इजाफा हुआ है। 
 
जलवायु परिवर्तन से भारत में सालाना अरबों डॉलर का नुकसान हो रहा है। जनवरी में जारी हुए साल 2017-18 के इकोनॉमिक सर्वे में आशंका जताई गई है कि मौसमी बदलाव की वजह से भारत में इस वर्ष कृषि आय 20 से 25 फीसदी तक कम रह सकती है। 
 
पशुधन या कैटल पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव दिखने लगा है। आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि पशुधन से होने वाली आय में भी 15 से 18 फीसदी की कमी हो सकती है। 
 
इसका कारण है कि भारत में 1970 से 2010 के बीच खरीफ सीजन में तापमान 0.45 डिग्री सेल्सियस और रबी सीजन में 0.63 फीसदी बढ़ गया है। 
भारत में कृषि पर होने वाला कोई भी नकारात्मक प्रभाव पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालता है। अप्रत्याशित मौसम का असर बहुत व्‍यापक पैमाने पर हो रहा है। 
 
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादन करने वाले देशों में तापमान में वृद्धि की वजह से 2050 तक 25 फीसदी उत्पादन की कमी हो सकती है। 
 
भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए ऐसा होना खाद्यान्न का बड़ा संकट खड़ा कर सकता है। वहीं अमेरिका, यूरोप जैसे ठंडे इलाकों में तापमान बढ़ने से गेहूं का उत्पादन 25 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है। इससे आयात-निर्यात पर भारी असर पड़ना तय है। 
 
जलवायु परिवर्तन से अमेरिका, यूरोप में मौसम गर्म हो रहा है, जिसकी वजह से वहां ऐसी फसलों की पैदावार बढ़ेगी, जिनका उत्‍पादन बेहद कम है। गर्म देशों में गर्मी का मौसम लंबा खिंचेगा और शुष्कता बढ़ने से कई फसलों का उत्पादन अत्यधिक कम हो जाएगा।  
 
पूरी धरती की आबादी के लिए खाद्यानों का संकट गहराने और अन्न के मूल्यों में उतार-चढ़ाव कई मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं।