क्या है बांग्लादेश में नोटों पर राजनीति का नया खेल: नए नोटों पर हिंदू मंदिर, बंगबंधु की तस्वीर गायब
Bangladesh to replace Sheikh Mujibur Rahman's image with graffiti on banknotes : बांग्लादेश में इन दिनों सियासी हलचल मची हुई है, और इसकी वजह है देश की नई मुद्रा। 1 जून, 2025 से बांग्लादेश बैंक द्वारा जारी किए गए नए नोटों ने एक बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। इन नोटों से देश के संस्थापक और आजादी के नायक, बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की चिरपरिचित तस्वीर को हटा दिया गया है। उनकी जगह अब बांग्लादेश की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को दर्शाने वाली तस्वीरें ले रही हैं, जिनमें हिंदू-बौद्ध मंदिर, ऐतिहासिक महल, मनमोहक प्राकृतिक दृश्य, मस्जिदें और मशहूर चित्रकार जैनुल आबेदीन की बंगाल अकाल की मार्मिक पेंटिंग्स शामिल हैं।
मुजीबुर्रहमान की तस्वीर क्यों हटी?
ऐतिहासिक रूप से, शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर 1972 से बांग्लादेशी मुद्रा पर प्रमुखता से छपी थी। यह उनकी 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका का प्रतीक थी। बांग्लादेश बैंक का कहना है कि अब नोटों पर किसी व्यक्ति की तस्वीर नहीं होगी, बल्कि देश की समग्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को दर्शाया जाएगा। हालांकि, यह फैसला सिर्फ एक कलात्मक बदलाव नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा राजनीतिक दांवपेच भी छिपा है।
अगस्त 2024 का राजनीतिक भूकंप और नए नोटों का संबंध
मौजूदा सरकार ने ये फैसला अगस्त 2024 में बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाने के बाद लिया है। शेख हसीना शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं और उनकी सरकार पर अक्सर मुजीबुर्रहमान के इर्द-गिर्द व्यक्तित्व पूजा को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है। नए नोटों से उनकी तस्वीर हटाना, मौजूदा सरकार द्वारा पूर्ववर्ती शासन की विरासत से खुद को अलग करने और एक नई पहचान स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि देश एक नए राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य की ओर बढ़ रहा है।
हिंदू मंदिर और समावेशी पहचान का दावा
नए नोटों पर सबसे महत्वपूर्ण बदलावों में से एक है दीनाजपुर के हिंदू मंदिर की तस्वीर को 20 टका के नोट पर शामिल करना। यह वही मंदिर है जो 2015 में एक आतंकी हमले का शिकार हुआ था। इस कदम को देश की बहु-धार्मिक पहचान को स्वीकार करने और प्रदर्शित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। यह शायद मौजूदा सरकार द्वारा एक समावेशी बांग्लादेश की छवि पेश करने की कोशिश है, जो केवल एक विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा या व्यक्ति पर केंद्रित न हो।
बगभंग और पहचान की राजनीति
बांग्लादेश की पहचान हमेशा से ही बंगभंग (1905 में बंगाल का विभाजन) और 1971 के मुक्ति संग्राम से गहराई से जुड़ी रही है। शेख मुजीबुर्रहमान इस संघर्ष के केंद्र में थे। उनकी तस्वीर का नोटों से गायब होना, कुछ लोगों के लिए देश की पहचान के एक महत्वपूर्ण हिस्से से दूरी बनाने जैसा लग सकता है। यह कदम बांग्लादेश की पहचान की राजनीति में एक नए अध्याय का संकेत देता है, जहां अब केवल एक व्यक्ति या एक विचारधारा के बजाय, देश की समग्र सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है।
आगे क्या?
बांग्लादेश में नए नोटों को लेकर चल रही यह बहस सिर्फ कागज के टुकड़ों की बात नहीं है, बल्कि यह देश के भविष्य की दिशा और उसकी पहचान की एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ये बदलाव बांग्लादेश के समाज और राजनीति पर दीर्घकालिक रूप से क्या प्रभाव डालते हैं, और क्या ये नए नोट वास्तव में एक अधिक समावेशी, शांतिपूर्ण और विविध बांग्लादेश की पहचान स्थापित कर पाएंगे।