भूख लगे तो खाने को जहरीले सांप-चूहे, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, इस जेल में सजा काट रहे कैदी हैं जिंदा लाशें!
चीन के शिनजियांग प्रांत के डिटेंशन कैंपों में उइगर मुसलमानों पर हिंसा की खबरें लगातार आती रहती हैं, लेकिन उत्तर कोरिया नजरों से बचा हुआ है। असल में उत्तर कोरिया की जेलें और ज्यादा खौफनाक हैं, जहां मानवाधिकारों का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। नॉर्थ कोरिया की बहुत कम ही बातें सामने पाती है। दबे-छिपे जो तथ्य सामने आते भी हैं, वे किम जोंग उन की सनक से जुड़े होते हैं।
दुनिया के इस हिस्से की जेलें सबसे क्रूर जेलों में से हैं। नॉर्थ कोरिया की सबसे खतरनाक जेलों में से एक योडोक कंसंट्रेशन कैंप में 10 साल बिताने के बाद किसी तरह चंगुल से छूटे एक शख्स Kang Cheol-hwan ने उस देश की जेलों में रहने वालों के खराब हालात के बारे में बताया।
इस कैदी ने बताया कि उनके दादा साल 1948 से लेकर 1994 के बीच कोरिया की सरकार में थे। किम जोंग इल (किम जोंग उन के पिता) के हाथ में सत्ता आते ही उनके परिवार पर पश्चिमी संस्कृति के असर का आरोप लगने लगा। थोड़े वक्त बाद ये माना गया कि परिवार तत्कालीन शासक और कम्युनिस्ट सोच के खिलाफ जा रहा है। सजा के तौर पर उन्हें जेल में डाल दिया गया। तब कैंग की उम्र काफी कम थी लेकिन तब भी उनसे दिन के 18-18 घंटे कड़ी मजदूरी करवाई गई, जिसमें जंगलों से लकड़ियों के भारी गट्ठे लाना भी शामिल था।
हालात समझने के लिए पिछले ही साल मानवाधिकारों पर काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यहां के लैबर कैंपों की सैटेलाइट इमेज ली थी। इसके साथ जुड़ी रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे उन जेलों में बलात्कार, गर्भपात, हत्या और कड़ी मजदूरी जैसी बातें आम हैं। माना जा रहा है कि कोरिया की इन जेलों में 2 लाख से भी ज्यादा कैदी बहुत खराब हालातों में रह रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इन जेलों के चारों ओर राइफल, हैंड ग्रेनेड और खूंखार कुत्तों को लिए एक फौज होती है, जो बाहर निकलने की कोशिश करने वालों को तुरंत खौफनाक मौत मार देती है।
इनमें से कई जेलों में सिर्फ विदेशी नागरिकों को रखा जाता है। ऐसे ही एक जेल को कैंप या कैंप 22 कहा जाता था, जिसे विदेशी मीडिया की भयंकर आलोचना के बाद बंद कर दिया गया। यहां पर मानवाधिकारों का बुरी तरह से हनन होता था। कैदियों को नारकीय हालातों में रखा जाता। उन्हें एक जोड़ी कपड़े मिलते, वही पहनकर उन्हें पूरी जिंदगी या सजा काटनी होती। बीमार पड़ने पर कोई मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं मिलता, बल्कि कब्र में जिंदा दफना दिया जाता। जेलों का बाहरी दुनिया के साथ कोई संपर्क नहीं रहता। जेल की एक पूर्व गार्ड लिम-हे-जिन के अनुसार यहां रहने वाले कैदी चलती-फिरती लाश से ज्यादा नहीं होते थे। उन्हें पीटा जाता और जेल से भागने की कोशिश पर या तो जिंदा जला दिया जाता या फिर गोलियों से भून दिया जाता था।
विदेशियों के हालात और भी खराब थे। उन्हें खाने के नाम पर 180 ग्राम कॉर्न दिया जाता। अगर कोई कैदी भूख लगने की बात कहे तो उसे जिंदा चूहा या सांप खाने को कहा जाता। हर महीने सैकड़ों कैदी मरते और कितने ही अचानक गायब हो जाते, जबकि उस जेल से बाहर निकल सकने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता था। एक कमरे में 100 के लगभग कैदियों को रखा जाता। अगर कोई कैदी बहुत ज्यादा मेहनत करे तो उसे इनाम के बतौर अपने परिवार के साथ एक कमरे में रहने की इजाजत मिलती, जहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं होती। एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक डाक्युमेंट्री में किसी तरह से कैद से निकल चुके विदेशी कैदियों ने कोरिया की जेलों के हालात बयां किए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार जेल में रहने वाली महिला कैदियों के हालात सबसे खराब हैं। जेल में आने से पहले इनका प्रेगनेंसी टेस्ट होता है, इसी दौरान संक्रमित इंजेक्शन लगने से बहुतेरी महिलाओं को यौन रोग हो जाते हैं। वहीं कैंप के रहने के दौरान महिलाओं के साथ बलात्कार और फिर जबर्दस्ती अबॉर्शन आम है। अगर कोई महिला अबॉर्शन के लिए राजी न हो तो उसे पहाड़ों पर बेहद वजनी सामान उठाकर लाने- ले जाने को कहा जाता है, ताकि उसका गर्भपात हो जाए।