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Last Modified: शनिवार, 20 मार्च 2021 (15:16 IST)

छत्तीसगढ़ की गुफाओं में उड़न तश्तरी का क्या है रहस्य?

छत्तीसगढ़ की गुफाओं में उड़न तश्तरी का क्या है रहस्य? - Chhattisgarh Cave
भोपाल से करीब 45 किलोमीटर दूर रायसेन जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध भीमबेटका की गुफाओं को आदि-मानव द्वारा पत्थरों पर की गई चित्रकारी के लिए जाना जाता है। उसी तरह छत्तीगढ़ के बस्तर जिले में भी जो गुफाएं हैं उन्हें भी प्राचीनकाल के आदिवासियों द्वारा की गई चित्रकारी के लिए जाना जाता है। 
 
 
यह बात सन् 2014 की है जब छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक गुफा में 10 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र मिले हैं। नासा और भारतीय आर्कियोलॉजिकल की इस खोज ने भारत में एलियंस के रहने की बात पुख्ता कर दी है। यहां मिले शैलचित्रों में स्पष्ट रूप से एक उड़नतश्तरी बनी हुई है, साथ ही इस तश्तरी से निकलने वाले एलियंस का चित्र भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो आम मानव को एक अजीब छड़ी द्वारा निर्देश दे रहा है। इस एलियंस ने अपने सिर पर हेलमेट जैसा भी कुछ पहन रखा है जिस पर कुछ एंटीना लगे हैं।
 
वैज्ञानिक कहते हैं कि 10 हजार वर्ष पूर्व बनाए गए ये चित्र स्पष्ट करते हैं कि यहां एलियन आए थे, जो तकनीकी के मामले में हमसे कम से कम 10 हजार वर्ष आगे हैं ही। दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं के चित्रों में ऐसे चित्र भी मिलते हैं जिसमें एक अंतरिक्ष यान के साथ एक अजीब-सा मानव दर्शाया गया है।
 
कांकेर के चारामा से 15 किलोमीटर दूर चंदेली गांव के पहाड़ों पर उड़न तश्तरी के प्रमाण मिले हैं। इसके साथ ही गोटीटोला के पहाड़ों पर एलियन की तरह के शैलचित्र मिले हैं। पुरातत्व विज्ञानियों का अनुमान है कि दस हजार साल पहले छत्तीसगढ़ में एलियन व उड़न तश्तरी देखे गए होंगे, उसके बाद आदिमानवों ने इन चित्रों को पहाड़ों पर उकेरा है।
 
शैलचित्र में हेलिकॉप्टर की तरह पंखों को घुमाने के लिए पांच खड़ी लाइन बनाई गई है। इसके साथ ही हेलिकॉप्टर की ब्लेड, रोटर और लैंडिंग के लिए स्टैंड को भी प्रदर्शित किया गया है। शैलचित्र में तश्तरीनुमा आठ के आकार के दो छेद भी बने हैं। इसको देखने पर पूरी तरह से साफ हो रहा है कि उस समय के आदिमानव ने उड़नतश्तरी देखी होगी। गोटीगोला के पहाड़ों में एक पत्थर पर आठ शैलचित्र बने हैं। इनमें से दो शैलचित्रों पर हॉलीवुड और फिल्मों में दिखाए जाने वाले एलियन की आकृति उकेरी गई है। इसमें एलियन की तरह हाथ, पैर और चेहरे को बनाया गया है।
 
इसी तरह से यूनेस्को संरक्षित क्षेत्र भीमबेटका का संबंध पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल से जोड़कर देखा जाता है। एक नये अध्ययन में, भीमबेटका में दुनिया का सबसे दुर्लभ और सबसे पुराना जीवाश्म खोजा गया है। शोधकर्ता इसे भारत में डिकिंसोनिया का पहला जीवाश्म बता रहे हैं, जो पृथ्वी का सबसे पुराना, लगभग 57 करोड़ साल पुराना जानवर है। भारत में डिकिंसोनिया जीवाश्म भीमबेटका की ‘ऑडिटोरियम गुफा’ में पाया गया है। यह जीवाश्म भांडेर समूह के मैहर बलुआ पत्थर में संरक्षित है, जो विंध्य उप-समूह चट्टानों का हिस्सा है। 
 
भीमबेटका में पत्थरों पर जो चित्रकारियां (शैलचित्रों) मिलती हैं, वो बड़ी ही अजीब है। उसमें उसकाल के जानवरों के अलावा आदिवासियों के अजीब लोगों से रिश्तों को भी दर्शाती हैं। यह चित्रकारी लगभग 25 हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैलचित्र बने हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को कुछ इतिहासकार 35,000 वर्ष पुरानी मानते हैं, तो कुछ 12,000 साल पुरानी। एलियंस में भरोसा करने वाले वैज्ञानिक मानते हैं कि स्थान का एलियंस और उड़नतश्तरी से जरूर कुछ ना कुछ संबंध है। 
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