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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

पिरामिड के 10 रहस्य जानकर आप रह जाएंगे हैरान

पिरामिड के 10 रहस्य जानकर आप रह जाएंगे हैरान - 10 Secrets of the Pyramids
आज से 4 से 5 हजार वर्ष पूर्व दुनिया के हर कोने में लगभग एक ही काल में पिरामिड बनाए गए। यह वही काल था जबकि मिस्र में पिरामिड बने थे। यह वह काल था जबकि इजिप्ट, सुमेरिया, बेबीलोनिया, मेसोपोटामिया, असीरिया, मेहरगढ़, सैंधव, पारस्य आदि प्राचीन सभ्यताएं अपने विकास के चरम पर थीं।
हम यहां बात सिर्फ मिस्र के पिरामिड की ही नहीं करेंगे बल्कि दुनियाभर के पिरामिड के रहस्यों को बताने के साथ ही बताएंगे कि आखिर क्या है पिरामिड के चमत्कार? आओ जानते हैं पिरामिडों के रहस्यों के बारे में कुछ खास।
 
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स्वस्तिक है पिरामिड का प्रतीक : स्वस्तिक का आविष्कार आर्यों ने किया और पूरे विश्‍व में यह फैल गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वस्तिक अपने आप में एक पिरामिड है?
एक कागज का स्वस्तिक बनाइए और फिर उसकी चारों ‍भुजाओं को नीचे की ओर मोड़कर बीच में से पकड़िए। इसे करने पर यह पिरामिड के आकार का दिखाई देखा। कैसा बनेगा स्वस्तिक का पिरामिड इसका वीडियो देखें।
 
 

हिन्दू धर्म में स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है। स्वस्तिक के प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है।
 
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उत्तर और दक्षिण गोलार्ध : पिरामिड पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि सभी पिरामिड उत्तर-दक्षिण एक्सिस पर बने हैं अर्थात उन सभी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के प्रभाव को जानकर बनाया गया है। इसका भू-चुम्बकत्व एवं ब्रह्मांडीय तरंगों से विशिष्ट संबंध है।

उत्तर-दक्षिण गोलार्धों को मिलाने वाली रेखा पृथ्वी की चुम्बक रेखा है। चुम्बकीय शक्तियां विद्युत-तरंगों से सीधी जुडी हुई हैं, जो यह दर्शाती हैं कि ब्रह्मांड में बिखरी मैग्नेटोस्फीयर में विद्यमान चुम्बकीय किरणों को संचित करने की अभूतपूर्व क्षमता पिरामिड में है। यही किरणें एकत्रित होकर अपना प्रभाव अंदर विद्यमान वस्तुओं या जीवधारियों पर डालती हैं। इन निर्माणों में ग्रेनाइट पत्थर का उपयोग भी सूक्ष्म तरंगों को अवशो‍षित करने की क्षमता रखता है। इससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन लोग इसके महत्व को जानते थे। मतलब यह कि पिरामिड में रखी वस्तु या जीव की गुणवत्ता और उम्र में इससे कोई फर्क पड़ता होगा।
 
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बदल जाता है पिरामिड में रखी वस्तुओं का गुण धर्म?
विशेषज्ञों के अनुसार पिरामिड की आकृति उत्तर-दक्षिण अक्ष पर रहने की वजह से यह ब्रह्मांड में व्याप्त ज्ञात व अज्ञात शक्तियों को स्वयं में समाहित कर अपने अंदर एक ऊर्जायुक्त वातावरण तैयार करने में सक्षम है, जो जीवित या मृत, जड़ व चेतन सभी तरह की चीजों को प्रभावित करता है।
 
घरेलू पिरामिडों का शुभारंभ फ्रांसीसी वैज्ञानिक मॉसियर बॉक्सि के प्रयोग के साथ हुआ। माना जाता है कि किसी भी प्रकार के पिरामिड में रखी वस्तुओं के गुण धर्म में बदलाव आ जाता है अर्थात यदि किसी प्रकार के छोटे, बड़े, लकड़ी या मात्र कागज के पिरामिड में कोई खाद्य सामग्री रखी जाए तो उसके गुणों में बदलाव आ जाएगा और वह बहुत देर तक सड़ने से बची रहेगी। इसी कारण प्राचीन लोग अपने परिजनों के शवों को पिरामिड में रखते थे।
 
प्रयोग के लिए बताया जाता है कि जिस चीज को छोटे-बड़े पिरामिड के अंदर रखना हो, उसे आधार से करीब 2-3 इंच की ऊंचाई पर पिरामिड के मध्य में रखकर अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। पिरामिड के अंदर मध्यक्षेत्र में रखी चीजों पर पिरामिड का जादुई प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। यह क्षेत्र पिरामिड के मध्य में उसकी कुल ऊंचाई की एक-तिहाई ऊंचाई पर स्थित होता है।
 
पिरामिड की सही दिशा का निर्धारण बहुत ही महत्वपूर्ण है अतः इसका इस्तेमाल करते समय पिरामिड को उत्तर-दक्षिण दिशा में रखना आवश्यक है। अगर गलती से पिरामिड का सही दिशा में रखकर इस्तेमाल न किया जाए, तो उसमें बैठने वाले को सिरदर्द हो सकता है।
 
इस संदर्भ में अनुसंधान कर रहे चिकित्सा विशे‍‍षज्ञों का कहना है कि सिरदर्द और दांत दर्द के रोगी को सही दिशा में रखे पिरामिड के अंदर बिठाने पर वे दर्दमुक्त हो जाते हैं। गठिया, वातरोग, पुराना दर्द भी इस संरचना में संघनित ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रभाव से दूर हो जाते हैं। पेड़-पौधों पर पिरामिड के प्रभाव के अध्ययन से भी नि‍ष्कर्ष सामने आया है कि एक ही प्रकार के पौधों को अंदर तथा बाहर के वातावरण में रखने पर पिरामिड के अंदर वे कहीं ज्यादा तेजी से पनपते हैं। उसकी ऊर्जा तरंगें वनस्पतियों की वृद्धि पर सूक्ष्म एवं तीव्र प्रभाव डालती हैं।
 
पिरामिड के अंदर रखे जल को पीने वाले पाचन संबंधी रोग से कुछ हद तक मुक्ति पाते देखे गए हैं। यही जल जब त्वचा पर लगाया जाता है तो झुर्रियां मिटाने में लाभ मिलता है। घावों को जल्दी भरने में भी इस जल का उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर पिरामिड के अंदर बैठकर ध्यान-साधना करने वाले साधकों पर भी कुछ प्रयोग-परीक्षण हुए हैं। पाया गया है कि इसके अंदर बैठने पर तनाव से सहज ही छुटकारा मिल जाता है और शरीर में एक नई स्फूर्ति के संचार का अनुभव होता है।
 
पिरामिड के अंदर किसी तरह की आवाज या संगीत बजाने पर बड़ी देर तक उसकी आवाज गूंजती रहती है। इससे वहां उपस्थित लोगों के शरीर पर विचित्र प्रकार के कम्पन पैदा होते हैं, जो मन और शरीर दोनों को शांति प्रदान करते हैं।
 
बीजों को बोने के पहले अगर थोड़ी देर के लिए पिरामिड के अंदर रख दिया जाए तो वे जल्दी और अच्छी तरह से अंकुरित होते हैं। बीमार और सुस्त पौधों को भी पिरामिड द्वारा ठीक और उत्तेजित किया जा सकता है।
 
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मिस्र के पिरामिडों की ही तरह दुनिया में कई जगह पिरामिड बनाए गए हैं। हालांकि मिस्र जैसे पिरामिडों का निर्माण आज भी संभव नहीं है। आज तक वैज्ञानिक व इतिहासविद इस अबूझ पहेली को नहीं जान पाए कि पिरामिड के निर्माण में किस तरह की तकनीक और सामानों का प्रयोग किया गया था। यह अचरज की बात है कि हजारों साल बाद तक भी ये पिरामिड सुरक्षित हैं और इनकी चमक बरकरार है। खैर, आप जानिए आधुनिक समय में कहां-कहां बने हैं पिरामिड...
* लॉस वेगास में 4,000 कमरों वाले होटल लक्सर को पिरामिड की शक्ल दी गई है। 
* पेरिस के लौवरे में शीशे (ग्लास) का इस्तेमाल करते हुए पिरामिड बनाए गए हैं। 
* कजाकिस्तान में 203 ऊंचे पिरामिडों का निर्माण कराया गया है।
* भारत के पूना में ओशो आश्रम में ध्यान के लिए दो विशालकाय पिरामिड बनाए गए हैं।
 
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भारत के असम में भी है पिरामिड : असम के शिबसागर जिले के चारडियो में हैं अहोम राजाओं की विश्‍वप्रसिद्ध 39 कब्रें। इस क्षेत्र को 'मोइडम' कहा जाता है। बताया जाता है कि उनका आकार भी पिरामिडनुमा है और उनमें रखा है अहोम राजाओं का खजाना। अहोम राजाओं का शासन 1226 से 1828 तक रहा था। उनके शासन का अंत होने के बाद उनके खजाने को लूटने के लिए मुगलों ने कई अभियान चलाए, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।
कहते हैं कि इस खजाने को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मुगलों ने प्रयास किए। सेनापति मीर जुमला ने उनकी कब्रों की खुदाई करवाना शुरू कर दिया। उसने वहां स्थित कई मोइडमों को तहस-नहस करवा दिया, लेकिन हमले के चंद दिनों बाद ही मीर की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई।
 
इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस कब्र को खोदकर यहां के रहस्य को जानने का प्रयास किया लेकिन उनकी भी मौत हो गई। फिर एक बार म्यांमार के सैनिकों ने हमला कर कब्र के खजाने को लूटने का प्रयास किया लेकिन उनको खून की उल्टियां शुरू हो गईं और वे सभी मारे गए।
 
39 अहोम शासक इन पिरामिडों में बनी कब्रों में चिरनिद्रा में सो रहे हैं। इन राजाओं को जिसने भी जगाने की कोशिश की, उसको मौत की नींद सोना पड़ा है। इन मोइडमों के साथ रहस्यों और दौलत की ऐसी दुनिया लिपटी हुई है कि जिसकी वजह से इन कब्रों पर बार-बार आक्रमण करने के साथ इनसे छेड़खानी की गई। जिसने भी उन कब्रों पर बर्बादी की लकीर खींची, मौत ने उसे गले लगा लिया।
 
लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि मोइडम की कब्रों में बेशुमार खजाना था जिसको लूटने की चाहना से लोग आते थे और लूटकर चले जाते थे। लूट के माल के बाद खजाने को लेकर आपस में ही झगड़कर मर जाते थे। इस तरह यहां रखा सोना पहले मुगलों, फिर अंग्रेजों और फिर बर्मा के सैनिकों ने लूट लिया।
 
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मिस्र के पिरामिड : जब पिरामिड की बात आती है तो मिस्र या इजिप्ट के पिरामिडों की ज्यादा चर्चा होती है। ऐसा क्यों? क्योंकि वे अभी तक अच्छे से संरक्षित हैं जबकि भारत, चीन और मध्य एशिया के पिरामिड तो युद्ध में तबाह हो गए। दरअसल मिस्र के पिरामिड पुरानी खो गई सभ्‍यता के तीर्थ है जो अब मकबरें में बदल गए हैं। मिस्र में 138 पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीजा में तीन। हालांकि जमीन में अभी भी इतने ही और पिरामिड दबे हुए हैं। गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के 7 अजूबों की सूची में शामिल है। यह पिरामिड 450 फुट ऊंचा है। लगभग 4,000 वर्षों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा है।
 
अमेरिका में पिरामिड : अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी। 250 ईस्वी से 900 ईस्वी के बीच माया सभ्यता अपने चरम पर थी। यूं तो इस इलाके में ईसा से 10,000 साल पहले से बसावट शुरू होने के प्रमाण मिले हैं और 1800 साल ईसा पूर्व से प्रशांत महासागर के तटीय इलाकों में गांव भी बसने शुरू हो चुके थे। 
 
लेकिन कुछ पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि ईसा से कोई 1,000 साल पहले माया सभ्यता के लोगों ने आनुष्ठानिक इमारतें बनाना शुरू कर दिया था और 600 साल ईसा पूर्व तक बहुत से परिसर बना लिए थे। सन् 250 से 900 के बीच विशाल स्तर पर भवन निर्माण कार्य हुआ, शहर बसे। उनकी सबसे उल्लेखनीय इमारतें पिरामिड हैं, जो उन्होंने धार्मिक केंद्रों में बनाईं लेकिन फिर सन् 900 के बाद माया सभ्यता के इन नगरों का ह्रास होने लगा और नगर खाली हो गए।
 
अंटार्कटिका में पिरामिड : रेडियो रूस की वेबसाइट के अनुसार अमेरिका और योरप के वैज्ञानिकों ने सन् 2013 में बर्फीले अंटार्कटिका में 3 पिरामिडों की खोज की है जिनमें से 1 पिरामिड तो समुद्र तट के पास ही है, लेकिन 2 पिरामिड तट से 16 किलोमीटर दूर समुद्र में डूबे हुए हैं। ये तीनों ही पिरामिड मानव द्वारा निर्मित हैं, क्योंकि हजारों वर्ष पहले अंटार्कटिका का यह क्षेत्र बर्फीला होने की जगह पेड़-पौधों और हरियाली से पटा हुआ था। यहां उस काल में मनुष्य रहता था। अंटार्कटिका की भूमि पर घने जंगल हुआ करते थे और तरह-तरह के जीव-जंतु भी रहते थे। आज अंटार्कटिका महाद्वीप का एक बहुत बड़ा हिस्सा बर्फ की मोटी पर्त से ढंका हुआ है। 
 
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भारत में पिरामिड : रेखा गणित का जन्म भारत में हुआ था। यदि सिंधु घाटी की सभ्यता बची रहती तो निश्चित ही हमें पिरामिडों के बारे में खोज करने की जरूरत नहीं होती। बलूचिस्तान से लेकर कश्मीर और कश्मीर से लेकर नर्मदा गोदावरी के तट भव्य मंदिरों और महलों का मध्यकाल में जो विध्वंस किया ‍गया उसके अब अवशेष भी नहीं बचे हैं। खैर..
कैलाश पर्वत एक पिरामिडनुमा पर्वत ही है। उसे देखकर ही प्राचीनकाल में हिन्दुओं ने अपने मंदिरों, महलों आदि की स्थापना की थी। सनातन धर्म के मंदिरों की छत पर बनी त्रिकोणीय आकृति उन्हीं प्रयोगों में से एक है। जिसे वास्तुशास्त्र एवं वैज्ञानिक भाषा में पिरामिड कहते हैं। यह आकृति अपने-आप में अदभुत है।
 
यदि आप प्राचीनकाल के मंदिरों या आज के दक्षिण भारतीय मंदिरों की रचना देखेंगे तो जानेंगे कि सभी कुछ-कुछ पिरामिडनुमा आकार के होते थे। दक्षिण भारते के मंदिरों के सामने अथवा चारों कोनों में पिरामिड आकृति के गोपुर इसी उद्देश्य से बनाए गए हैं कि व्यक्ति को उससे भरपूर ऊर्जा मिलती रहे। ये गोपुर एवं शिखर इस प्रकार से बनाए गए हैं ताकि मंदिर में आने-जाने वाले भक्तों के चारों ओर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का विशाल एवं प्राकृतिक आवरण तैयार हो जाए।
 
आप जानते ही हैं कि ऋषि-मुनियों की कुटिया भी उसी आकार की होती थी। प्राचीन मकानों की छतें भी कुछ इसी तरह की होती थीं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के घर पिरामिडनुमा ही पाए जाते हैं।
 
हालांकि जानकार लोग कहते हैं कि आज से लगभग 5,000 वर्ष पूर्व जब मिस्र में पिरामिडों का निर्माण हुआ, तब भारत में सर्वत्र विशालकाल तुंग वृक्षों वाले वन थे तथा तत्कालीन भारत की जलवायु पूर्णत: संतुलित, उत्तम तथा आरोग्यप्रद थी। इस कारण भारत में पिरामिड बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके विपरीत मिस्र के गर्म रेगिस्तान में वृक्षावली तथा जल के अभाव की स्‍थिति में पिरामिड बनाने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। पिरामिडों में एक और जहां पीने के जल का संवरक्षण किया जाता था तो दूसरी ओर उससे बिजली भी उत्पादित ‍की जाती थी।
 
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पिरामिडों में ही शव क्यों रखे जाते हैं?
पिरामिडों की कुल ऊंचाई की ऊंचाई पर रखे शव (ममी) आज तक अविकृत हैं। पिरामिड में प्रकाश, जलवायु तथा ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रूप में रहता है जिसके चलते कोई भी वस्तु विकृत नहीं होती। यह रहस्य प्राचीन काल के लोग जानते थे। इसीलिए वे अपनी कब्रों को पिरामिडनुमा बनाते थे और उसको इतना भव्य आकार देते थे कि वह हजारों वर्ष तक कायम रहे।
 
प्राचीन मिस्री सम्राट अखातून का नाम संस्कृत में अक्षय्यनूत का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है शरीर अक्षय्य तथा नित नया रहता है। इस प्रकार पिरामिड विद्या अमरता की विद्या है। प्रतिदिन कुछ समय तक पिरापिड में रहने से व्यक्ति की बढ़ती उम्र रुक जाती है।
 
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मिस्र के पिरापिडों पर आज भी शोध जारी है। हर बार यहां नए रहस्यों का पता चलता है। समय समय पर दुनिया भर के इंजीनियर और वैज्ञानिक पिरामिड और ममी से जुड़े रहस्यों को समझे के लिए शोध करते रहते हैं। इसी तरह के एक शोध में जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में कुछ वैज्ञानिक एक 12 सेंटीमीटर लंबी बोतल के अंदर के राज जानना चाह रहे हैं जो इथोपिया के एक पिरामिड से मिली है। ये खूबसूरत छोटी सी बोतल धातु की नहीं है। मिट्टी और सगंमरमर की बनी है। बोतल करीब साढ़े तीन हजार साल पुरानी बताई जा रही है जिसमें सूख चुका इत्र है।
 
वैज्ञानिकों ने इस बोतल का सिटी स्कैन किया और पता चला कि इत्र सूख चुका है। खोज बीन करने वालों के मुताबिक इस इत्र का इस्तेमाल मिस्त्र की तत्कालीन राजकुमारी फाराओ हेट्सेप्सुट करती थीं। हेट्सेप्सुट ने तब के मिस्र पर पच्चीस साल तक राज किया। बहरहाल, वैज्ञानिक चाहते हैं कि इस इत्र की हूबहू नकल तैयार की जाए।
 
हालांकि मिस्र के विश्व-प्रसिद्ध गीजा के पिरामिड के अंदर क्या है यह जानने में अभी और समय लगेगा। इसके अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं है।
 
अगले पन्ने पर दसवां रहस्य..
 

हालांकि वैज्ञानिक को अभी तक यह समझ में नहीं आ रहा हैं कि पिरामिड के ऊपर ऐसा क्या है जो इतनी तेज बिजली का उत्पादन कर सकता है कि संपूर्ण पिरामिठ बिजली से रोशन हो जाए।

एक अरबी गाइड की सहायता से ग्रेट पिरामिड के सबसे उपर पहुंचे सर सीमन ने इसका खुलास किया था कि ग्रेट पिरामिड का संबंध आसमानी बिजली से है। इसी तरह गीजा के पिरामिड में ही नहीं दुनियाभर के पिरामिड अभी भी रहस्य की चादर में लिपिटे हुए हैं।