एक शहीद का खत... भारतीय सैनिक जो जंग ही नहीं, दिल भी जीत लेते हैं
देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात भारतीय सैनिक न सिर्फ दुश्मन सेना के साथ हुई जंग में जीतकर तिरंगा फहराते हैं बल्कि हमारे सैनिक अपनी भावनाओं से देश का दिल भी जीत लेते हैं। राजपुताना राइफल्स-दो के कैप्टन विजयंत थापर ने शहादत के ठीक पहले अपने परिजनों को ऐसा ही दिल जीतने वाला एक पत्र लिखा था।
जब तक आप लोगों को यह पत्र मिलेगा, मैं ऊपर आसमान से आपको देख रहा होऊंगा और अप्सराओं के सेवा-सत्कार का आनंद उठा रहा होऊंगा। मुझे कोई पछतावा नहीं है कि जिंदगी अब खत्म हो रही है, बल्कि अगर फिर से मेरा जन्म हुआ तो मैं एक बार फिर सैनिक बनना चाहूंगा और अपनी मातृभूमि के लिए मैदान-ए-जंग में लडूंगा।
अगर हो सके तो आप लोग उस जगह पर जरूर आकर देखिए, जहां आपके बेहतर कल के लिए हमारी सेना के जांबाजों ने दुश्मनों से लोहा लिया था। जहां तक इस यूनिट का सवाल है, तो नए आने वालों को हमारे इस बलिदान की कहानियां सुनाई जाएंगी और मुझे उम्मीद है कि मेरा फोटो भी 'ए कॉय' कंपनी के मंदिर में करणी माता के साथ रखा होगा।
आगे जो भी दायित्व हमारे कंधों पर आएंगे, हम उन्हें पूरा करेंगे। मेरे आने वाले धन में से कुछ भाग अनाथालय को भी दान कीजिएगा और रुखसाना को भी हर महीने 50 रुपए देते रहिएगा और योगी बाबा से भी मिलिएगा।
बेस्ट ऑफ लक टू बर्डी। हमारे बहादुरों का यह बलिदान कभी भूलना मत। पापा, आपको अवश्य ही मुझ पर गर्व होगा और मां भी मुझ पर गर्व करेंगी। मामाजी, मेरी सारी शरारतों को माफ करना। अब वक्त आ गया है कि मैं भी अपने शहीद साथियों की टोली में जा मिलूं।
बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल, लिव लाइफ किंग साइज।
आपका,
रॉबिन (उन्हें घर में प्यार से रॉबिन बुलाया जाता है)
कैप्टन विजयंत थापर टोलोलिंग पहाड़ी पर काबिज पाक घुसपैठियों से हुए भीषण युद्ध में शहीद हुए थे। उनके माथे पर लगी गोली ने इस युवा का मानो विजय तिलक किया था, उनकी वीरता व बलिदान को राष्ट्र ने वीर चक्र से सम्मानित किया।
कारगिल युद्ध में सेना की सर्वोच्च परंपरा का पालन करते शहीद हुए राजपुताना राइफल्स-2 के कैप्टन विजयंत थापर का लिखा यह पत्र पढ़कर कोई भी यह समझ सकता है कि लड़ाई के मोर्चे पर भारतीय सैनिकों के हौसले कितने बुलंद हैं। यह पत्र एक ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह है, जो आने वाली तमाम पीढ़ियों को देशभक्ति और कर्तव्य-पालन की प्रेरणा देता रहेगा।