देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है। रहबरे राहे मुहब्बत रह न जाना राह में, लज्जते सेहरा नवरदी दूरी-ए-मंजिल में है। वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ, हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है। आज फिर मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार, क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है। ऐ शहीदे मुल्को मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफिल में है।
अब न पिछले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत बस दिल-ए-‘बिस्मिल्ल’ में है।