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होली पर भद्रा का साया, क्या है भद्रा? क्यों मानी जाती है अशुभ

होली पर भद्रा का साया, क्या है भद्रा? क्यों मानी जाती है अशुभ - Holika Dahan 2022 Bhadra Dosh
holi n bhadra
 

हिन्दू धर्म के अनुसार होली पर होलिका दहन का विशेष महत्व है। इस वर्ष होलिका दहन पर भद्रा (Bhadra) का साया पड़ रहा है। ज्योतिषों के अनुसार 17 मार्च 2022 को फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि है और गुरुवार यानी आज दोपहर 1.30 मिनट से यह तिथि शुरू होकर शुक्रवार को दोपहर 12.48 मिनट तक रहेगी। इसकी कुल अवधि 23 घंटे 18 मिनट की रहेगी। आज के दिन पूर्णिमा शुरू होने के साथ ही भद्रा भी है, जो कि अर्द्धरात्रि बाद रात 1.09 मिनट तक रहेगी।

शास्त्रों की मानें तो मध्यरात्रि के बाद भद्रा के टलने से भद्रा के पुच्छ काल में होलिका दहन किया जा सकता है। इस बार होलिका दहन भद्रा पुच्छ काल में होगा यानी रात्रि 9.02 से 10.14 मिनट तक भद्रा पुच्छ काल रहेगा। यानी कुल 72 मिनट का समय होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त रहेगा। आज होली का पर्व फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशीयुक्त पूर्णिमा तिथि में मनाया जाएगा। मान्यतानुसार जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो विजय की प्राप्ति एवं सभी कार्य सिद्ध होते हैं। 
 
आइए जानते हैं भद्रा कौन है? 
 
धार्मिक पुराणों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और राजा शनि की बहन है। शनि की तरह ही भद्रा का स्वभाव भी कड़क बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि भद्रा काल में मंगल कार्य की शुरुआत या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। अत: भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। 
 
आइए अब जानते हैं आखिर क्या होती है भद्रा (What is Bhadra) ? और क्यों इसे अशुभ माना जाता है? (Bhadra Dosh)
 
हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग होता है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। 
 
Bhadra Kal Vichar पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है। यूं तो 'भद्रा' का शाब्दिक अर्थ है 'कल्याण करने वाली' लेकिन इस अर्थ के विपरीत भद्रा या विष्टि करण में शुभ कार्य निषेध बताए गए हैं। भद्रा के प्रमुख दोषों में यह बातें बताई गई है। जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है, कंठ में रहती है तो धन का नाश करती है। हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है। 
 
bhadra dosh in astrology ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशियों के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या या उनका नाश करने वाली मानी गई है। जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस समय सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनीतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा व्रत का विधान भी धर्मग्रंथों में बताया गया है।