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Last Updated : गुरुवार, 17 नवंबर 2022 (13:15 IST)

कैंची धाम कहां है? क्यों है प्रसिद्ध, किसलिए है चर्चा में?

Kainchi dham | कैंची धाम कहां है? क्यों है प्रसिद्ध, किसलिए है चर्चा में?
शिरडी, शेगांव, गोरखपुर, रामदेवरा और ददरेवा आदि की तरह कही कैंची धाम एक जागृत स्थान है जहां पर लाखों लोग माथा टेकने जाते हैं और मन्नत मांगते हैं। कैंची धाम से देश के ही नहीं विदेश के भी लाखों लोग जुड़े हुए हैं। प्रतिवर्ष जून में यहां पर भक्तों का मेला लगता है। आओ जानते हैं कि कैंची धाम कहां है? क्यों है प्रसिद्ध, किसलिए है चर्चा में?
 
कहां है कैंची धाम : कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल के पास स्थित है। यह धाम एक ऊंची पहाड़ी पर पर है। चमत्कारी बाबा नीम करौली ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी। उत्तराखंड के नैनीताल के पास कैंची धाम में बाबा नीम करौली 1961 में पहली बार यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर यहां आश्रम बनाने का विचार किया था। बाबा नीम करौली ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी। नीम करोली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है। 
 
क्यों प्रसिद्ध है कैंची धाम : बाबा नीम करोली एक चमत्कारिक बाबा थे। उनके भक्त उन्हें हनुमानजी का अवतार मानते हैं। वे एक सीधे सादे सरल व्यक्ति थे। उनके संबंध में कई तरह के चमत्कारिक किस्से बताए जाते हैं। उनके चमत्कारों और हनुमानजी की कृपा के कारण ही यह धाम प्रसिद्ध है। यह एक ऐसी जगह है जहां कोई भी मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता। यहां बाबा का समाधि स्थल भी है। यहां यहां बाबा नीम करौली की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है। यहां हनुमानजी की मूर्ति भी है।
 
 
किसलिए चर्चा में हैं कैंची धाम : नीम करोली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स का नाम लिया जाता है। कहा जाता है कि इस धाम की यात्रा करके उनका जीवन बदल गया। रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर 'मिरेकल ऑफ़ लव' नामक एक किताब लिखी इसी में 'बुलेटप्रूफ कंबल' नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा हमेशा कंबल ही ओड़ा करते थे। आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं। वर्तमान में विराट कोहली और अनुष्का शर्मा नीम करोली बाबा के यहां दर्शन करने पहुंच हैं। इसलिए यह धाम एक बार फिर चर्चा में है।
 
15 जून को देवभूमि कैंची धाम में मेले का आयोजन होता है और यहां पर देश-विदेश से बाबा नीम करौली के भक्त आते हैं। इस धाम में बाबा नीम करौली को भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। देश-विदेश से हजारों भक्त यहां हनुमान जी का आशीर्वाद लेने आते हैं। बाबा के भक्तों ने इस स्थान पर हनुमान का भव्य मन्दिर बनवाया। यहां 5 देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें हनुमानजी का भी एक मंदिर है। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे।
कौन थे नीम करोली बाबा : नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। 17 वर्ष की उम्र में ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था। 1958 में बाबा ने अपने घर को त्याग दिया और पूरे उत्तर भारत में साधुओं की भांति विचरण करने लगे थे। उस दौरान लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा सहित वे कई नामों से जाने जाते थे। गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की तो वहां उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारते लगे थे।
 
क्यों कहते हैं उन्हें नीम करोली बाबा : एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे। जब टिकट चेकर आया तो बाबा के पास टिकट नहीं था। तब बाबा को अगले स्टेशन 'नीब करोली' में ट्रेन से उतार दिया गया। बाबा थोड़ी दूर पर ही अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए। ऑफिशल्स ने ट्रेन को चलाने का आर्डर दिया और गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई, परंतु ट्रेन एक इंच भी अपनी जगह से नहीं हिली। बहुत प्रयास करने के बाद भी जब ट्रेन नहीं चली तो लोकल मजिस्ट्रेट जो बाबा को जानता था उसने ऑफिशल्स को बाबा से माफी मांगने और उन्हें सम्मान पूर्वक अंदर लाने को कहा। ट्रेन में सवार अन्य लोगों ने भी मजिस्ट्रेड का समर्थन किया। ऑफिशल्स ने बाबा से माफी मांगी और उन्हें ससम्मान ट्रेन में बैठाया। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन चल पड़ी। तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया। नीम करोली वाले बाबा के सैंकड़ों चमत्कार के किस्से हैं।
 
 
बाबा का निधन : बाबा नीम करौली महाराज के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। ज्येष्ठ पुत्र अनेक सिंह अपने परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं, जबकि कनिष्ठ पुत्र धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर के पद पर रहे थे। हाल ही में उनका निधन हो गया है। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बताया जाता है कि बाबा के आश्रम में सबसे ज्यादा अमेरिकी ही आते हैं। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच स्थित है।
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