• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. कथा-सागर
  4. short story on reality

लघुकथा : हरा, भगवा और सफेद

short story on love
एक दिन हरे और भगवे रंग में विवाद छिड़ गया। 
 
हरा रंग गुर्राकर बोला-"देख बे भगवे! तू आजकल मेरी मुख़ालफ़त में अनाप-शनाप बोले जा रहा है और पूरे देश में अपने झंडे गाड़ने की कोशिश कर रहा है।
 
यह सब ठीक नहीं है।जिस दिन मैंने तेरे ख़िलाफ़ फतवा जारी कर दिया,उस दिन से तेरे लिए उलटी गिनती शुरू हो जाएगी।"
 
भगवा रंग भी ताव खाकर कह उठा-"सुन बे हरे! अपनी औकात देखकर बात कर। मेरा अस्तित्व तो युगों-युगों से कायम है। तेरे जैसे कइयों को पचाकर डकार भी नहीं ली है।"
 
वाणी के इस असंयम ने क्रोधाग्नि में घी का कार्य किया और दोनों गुत्थमगुत्था हो गए।
 
तभी वहां खादी के रूप में सफेद रंग का प्रवेश हुआ।
 
उसने दोनों को रोका। फिर हरे को एक ओर ले जाकर समझाया-"देखो भाई! तुम मुझे वोट दो,मैं तुम्हें 'अल्पसंख्यक बनाम दीन-दुःखी' की चिर सहानुभूति दिलवाकर भगवे के ख़िलाफ़ कुछ भी कहने-करने के सर्वाधिकार दूंगा।"
 
तत्पश्चात् एकांत में भगवे के कंधे सहलाते हुए सफेद ने कहा-"सुनो बंधु! हम-तुम तो एक ही मिटटी की उपज हैं। सो तुम्हें हम न समझेंगे,तो कौन समझेगा?
 
तुम तो 'राम' का नाम लेकर हरे पर पिल पड़ो। मेरा 'बाहरी समर्थन' तुम्हारे साथ है।"
 
'हरे' और 'भगवे' को 'सफेद' की बात जंच गई और उसकी दिखाई राह पर वे चल पड़े।
 
परिणामस्वरूप और तो कुछ नहीं हुआ। बस,अब तक गर्व से मस्तक ताने खड़ा तिरंगा लज्जा और अवसाद से तनिक झुक गया,जिस पर तीनों का ध्यान नहीं गया... 
 
क्योंकि अब उनकी रग-रग 'समूह' की भाषा भूलकर 'निजत्व' का पाठ रट चुकी थी।