एक व्यक्ति भगवान बुद्ध के पास आकर बोला- भगवन, मैं लगातार आपके प्रवचन सुन रहा हूं। आप बड़ी अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं, लेकिन मेरे ऊपर इनका कोई असर नहीं होता। मैं गुस्सा खूब करता हूं, लालच, मद-मत्सर में रात-दिन फंसा रहता हूं। सच मानिए, आपकी बातों से रत्तीभर भी अंतर नहीं आया।
भगवान बुद्ध मुस्कराकर उसकी बात सुनते रहे। बोले, 'कहां के रहने वाले हो?'
'राजगृही के।' उसने उत्तर दिया।
'कहां बैठे हो?'
'श्रावस्ती में।' वह बोला।
'राजगृही यहां से कितनी दूर है?'
'इतनी!' हिसाब लगाकर उसने बताया।
'वहां पहुंचने में कितनी देर लगती है?'
'पैदल जाओ तो इतनी, सवारी से जाओ तो इतनी।'
'अच्छा, अब एक बात बताओ।'
'क्या?'
'यहां बैठे-बैठे क्या तुम राजगृही पहुंच सकते हो?'
खीजकर उसने जवाब दिया, 'यहां बैठे-बैठे वहां कैसे पहुंच सकते हैं?'
'तब?' बुद्ध ने प्रश्न किया।
वह बोला, 'राजगृही पहुंचने के लिए चलना होगा।'
बुद्ध ने कहा, 'तुम्हारी बात सही है। मंजिल पर पहुंचने के लिए चलना जरूरी होता है। बस, यही मैं कहता हूं। मैंने तो सिर्फ राह बताई है, मंजिल पर तो चलकर ही पहुंचना होगा। मेरी बातों का असर तभी होगा, जब तुम उनके अनुसार चलोगे, अपने जीवन में उन बातों पर अमल करोगे।'
साभार : ओशो रजनीश के प्रवचनों से