शुक्रवार, 15 नवंबर 2024
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Written By रवींद्र व्यास

ख़ूबसूरत ज़िंदगी के आगे त्रासदी फीकी है

ख्यात शायर बशीर बद्र से रवींद्र व्यास की बातचीत

ख़ूबसूरत ज़िंदगी के आगे त्रासदी फीकी है -
त्रासदी आदमी का कभी पीछा नहीं छोड़ती। त्रासदी तो हमारा मुकद्दर है लेकिन ज़िंदगी इतनी ख़ूबसूरत है कि तमाम त्रासदियाँ उसके सामने फीकी पड़ जाती हैं। कहानियों के ख़्वाब इतने ख़ूबसूरत हैं कि वे हकीकत बन गए हैं।      
जितनी तेजी से दुनिया ने तरक्की की है, उसके चलते इस दुनिया ने स्वर्ग भी देख लिया और दोज़ख भी। मजहब, ो, लिटरेचर की बात करें या आर्ट, कल्चर या फिर साइंस की, ग़ज़ब की तरक्की हुई है। साइंस की हकीकत ने यह कर दिखाया है कि सब जादू लगता है।

हम जब पैदा हुए थे, तब जो कल्पना करते थे वह अब सब सच होता दिखाई देता है। हम जब पैदा हुए थे और बाद में जब थोड़े बड़े हुए, तब जो कल्पना करते थे वह अब सब सच होता दिखाई दे रहा है।

कहानियों की कई बातें सच हुई
जैसे सुनहरे शहर समंदर में रहते हैं

ये जो तरक्की हुई है, इतनी ख़ूबसूरत तरीके से हुई है कि क्या कहा जाए। परियों की कल्पना की थी, वह अब हकीकत बन गई है। अब तो लगता है कि एक बटन दबाने से सारी दुनिया मेरे कमरे में आ सकती है।

लेकिन इतनी तरक्की के बावजूद इंसान का यही मुकद्दर रहा है कि कभी उसे बादशाह मारते हैं, कभी कोई पागल हिटलर मारता है और कभी नेचर। इंसान पर इतना जुल्म हुआ है कि उसकी बदनसीबी ज्यादा बदली नहीं है। उपलब्धियाँ हैं और बहुत विकास भी हुआ है लेकिन उसका फायदा गरीबों को नहीं मिल रहा है। वे अभी तक तंगहाल और फटेहाल हैं।

छोटे-छोटे दुःखों से लेकर इतने बड़े-बड़े दुःख हैं कि उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। कहने को एक तरफ हम बहुत तरक्की कर रहे हैं दूसरी तरफ बेईमानी, शैतानी और हैवानियत में भी बहुत तरक्की हुई है। इसका चेकअप होना जरूरी है।

  मैं नहीं भूलता कि मैं अयोध्या का हूँ और राम का पड़ोसी। अब जो देश है इसका कल्चर यकीनन जबर्दस्त है। मुझमें इस्लाम है, मुझमें बुद्ध का अंश भी है और ईसाई भी हूँ। मुझमें सरयू के पानी की खुशबू है।      
त्रासदी आदमी का कभी पीछा नहीं छोड़ती। त्रासदी तो हमारा मुकद्दर है लेकिन ज़िंदगी इतनी ख़ूबसूरत है कि तमाम त्रासदियाँ उसके सामने फीकी पड़ जाती हैं। कहानियों के ख़्वाब इतने ख़ूबसूरत हैं कि वे हकीकत बन गए हैं। सियासी लोगों का पागलपन, शैतानियाँ, हैवानियत और अय्याशी रही हैं, त्रासदियाँ भी हैं लेकिन ज़िंदगी का चेहरा इतना खूबसूरत है कि हम सब भूल जाते हैं।

  दुनिया बेहद खूबसूरत है लेकिन इसे बदसूरत बनाया जा रहा है। एक शायर होने के नाते मैं अपने वक्त की घटनाओं-दुर्घटनाओं से फिक्रमंद हूँ। इस दुनिया को बदसूरत करने के लिए तमाम इंतजामात भी कर लिए गए हैं ....      
हीरोशिमा-नागासाकी एक बहुत बड़ी ट्रेजेडी है लेकिन जापानियों ने देखिए क्या कर दिखाया है क्योंकि वे जिंदगी से मोहब्बत करना जानते हैं। जिंदगी खूबसूरत है और उससे मोहब्बत के चलते ही जापानियों ने यह कर दिखाया कि दुनिया उनका लोहा मानती है लेकिन यह भी याद रखा जाना चाहिए कि ये त्रासदियाँ दुबारा न हों और मोहब्बत जारी रहे।


देखिए हजारों सालों में कितनी तरक्की हुई है। चारों ओर चकाचौंध है लेकिन आदमी अब भी अकेला है। अजनबियत और तन्हाई कितनी बढ़ गई है। तब यह सब तरक्की किस बात, काम की? आदमी की यह अजनबियत और तन्हाई दूर होना चाहिए।

लेकिन हिप्पोक्रेट बनने से भी कोई फायदा नहीं क्योंकि आदमी को पिछली सहस्राब्दी में एक तरफ तमाम सुख-सुविधाएँ और खुशियाँ मिली तो दूसरी तरफ साइंस की तरक्की से उसका जीवन भी आसान हुआ। मेरी याददाश्त कमजोर नहीं, मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब बचपन में मैं मर रहा था तो मेरी माँ की सहेली ने कहा था कि इसे सीता की रसोई की राख लगा, यह जी जाएगा।

मैं नहीं भूलता कि मैं अयोध्या का हूँ और राम का पड़ोसी। अब जो देश है इसका कल्चर यकीनन जबर्दस्त है। मुझमें इस्लाम है, मुझमें बुद्ध का अंश भी है और ईसाई भी हूँ। मुझमें सरयू के पानी की खुशबू है। यह बात नहीं भूलना चाहिए। मैंने शेर कहा है-

हकीकत सिर्फ मछली जानती है
समंदर कितना बूढ़ा देवता ह

मैं कहना चाहता हूँ यह मुल्क ही नहीं, यह दुनिया बेहद खूबसूरत है लेकिन इसे बदसूरत बनाया जा रहा है। एक शायर होने के नाते मैं अपने वक्त की घटनाओं-दुर्घटनाओं से फिक्रमंद हूँ। इस दुनिया को बदसूरत करने के लिए तमाम इंतजामात भी कर लिए गए हैं लेकिन फनकार, हर क्षेत्र के फनकार इस दुनिया को खूबसूरत बनाने में जुटे हैं।