शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By WD

तन की मीठी झील में

तन की मीठी झील में -
हरीश निग
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अंग-अंग के सुर नए, बदली-बदली ताल,
आग लगाता-सा लगे, फागुन अब के साल।

रंगों की बौछार में, ताजमहल-सी देह,
मोरपंख से मन उगे, सुआपंखियाँ-नेह।

खट्टी-मीठी चिट्ठियाँ, फगुनाहट की बाँच,
सपनों के वन में भरे, मन का हिरन कुलाँच।

खिली-खिली-सी चाँदनी, धूली-धूली-सी धूप,
बौराई इस गंध में, बहके-बहके रूप।

साधों की नदिया चढ़ी, कोई ना ठहराव,
पाल खुले तूफान में, डगमग होती नाव।

अंग छरहरी नीम के, उठती मीठी पीर,
अभी-अभी तो हँस रही, अभी-अभी गंभीर।

गूँजे सारे गाँव में, ढोलक ताशे फाग,
पिया बसे परदेश में, सारे विरहा-राग।

तन की मीठी झील में, खिले कमल के फूल,
हल्दी बोरी चिट्ठियाँ, अब तो करो कबूल।