संक्रांति पर प्रेम कविता : मैं पतंग सी सजन तुम संग
मैं पतंग सी सजन तुम संग,
उड़ चली इक डोर में बंध।।
तिल से कोमल गुड़ से मीठे ,
मृदु रिश्ते की मिठास भीगे।
थाम कर मज़बूत मांजा ,
हो चली तेरे पीछे -पीछे।
मैं पतंग सी सजन तुम संग…..।।
मैं पतंग तुम डोर मेरी,
प्राण मैं तुम श्वास मेरी।
हृदय के आकाश में,
तुम ही सुबह-शाम मेरी।
मैं पतंग सी …….।।
शीत में तपती अगन-से,
ग्रीष्म मे हिमपुंज हिम-से।
वर्षा की बूँदों से रिमझिम,
ज़िंदगी के ऋतु बसंत-से।
मैं पतंग सी …….।।
खिचड़ी सी जा मिलूं तुम में,
मिसरी सी जा घुलूं तुम में।
प्रीत के रंगों में रंगकर,
हर रीत सी जा ढलूं तुम में।
मैं पतंग सी सजन तुम संग
उड़ चली इक डोर में बंध।।
प्रीति दुबे कृष्णाराध्या
इंदौर मध्यप्रदेश