कविता : एक साहित्यिक गोष्ठी का सारांश
शहर के तमाम बुद्धिजीवियों
कथाकारों और कवियों ने
हिन्दुस्तान की समस्याओं
को लेकर संगोष्ठी की
मंच पर हिन्दुस्तान का
नक्शा लगा हुआ था
किसी ने बताया कि नक्शे के
इस भाग पर भुखमरी की समस्या
तो किसी ने बताया इस भाग पर
बेरोजगारी है कोई किसी हिस्से पर
हुए बलात्कार की घटना से
परेशान था तो कोई किसी का
किसी स्थान पर हुए आत्महत्या और
मानवाधिकारों के उल्लंघन से
हुआ बुरा हाल था
संगोष्ठी के बाद खानपान
और पीने का दौर चला
और बुद्धिजीवियों ने पी-पीकर
अनेक बोतलों को खाली कर
सभी समस्याओं को उन्हीं बोतलों में बंद कर दिया।
और इस बीच हिन्दुस्तान का
नक्शा अब जमीन पर गिरकर फड़फड़ा रहा था।