पर्यावरण दिवस पर कविता : 5 जून को मैंने कोई कविता नहीं लिखी...
एक और पेड़
ऋतु मिश्र
5 जून
मैंने कोई कविता नहीं लिखी...
एक दिन में
कुछ शब्दों में
प्रकृति की खूबसूरती
समेट कैसे पाती....
कैसे लिखा जाता
हरे रंग का तस्वीरों से
गायब हो जाना,
कैसे शब्दों में पिरोए जाते
कुल्हाड़ी के वार
हाथों के घेरे से भी बड़े
तनों पर चल रही मशीनों से
आई चीत्कार।
कुछ लिख भी लिया जाता अगर
तो उसमें शामिल होते
गुलमोहर, चंपा, चमेली और मोगरा
थोड़ा हरसिंगार
फिर इसे छापने के लिए
काटा जाता
एक और पेड़।