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कविता : मानवता

कविता : मानवता - poem on humanity
मानवता अपना ले बंदे,
मिट जाएंगे सारे फंदे।
 
प्रभु ने तुझको जनम दिया है,
तुझ पर ये उपकार किया है।
जिसने मानवता अपनाई,
उसने जीवन का उद्धार किया है।
 
छोड़ के सारे गोरखधंधे,
मानवता अपना ले बंदे,
मिट जाएंगे सारे फंदे।
 
मानवता है एक सवेरा,
न कुछ तेरा, न कुछ मेरा।
सब धर्मों से ऊंचा देखो,
दीन-दु:खी के मन का फेरा।
 
सेवा के लटका के फुंदे,
मानवता अपना ले बंदे,
मिट जाएंगे सारे फंदे।
 
मानवता है प्रभु का दर्शन,
दीन-दु:खी का करके अर्चन।
जीवन को तू सद्गति दे दे,
मानवता का कर पूर्ण समर्पण।
 
त्याग विचार ये सारे गंदे,
मानवता अपना ले बंदे,
मिट जाएंगे सारे फंदे।
 
सब धर्मों की सीख यही है,
जीवन की बस रीत यही है।
मानवता में बस जा मानुष,
हार नहीं है, जीत यही है।
 
बंद करो सब काले धंधे,
मानवता अपना ले बंदे,
मिट जाएंगे सारे फंदे।
 
चारों ओर है घुप्प अंधेरा,
कलुषित मन के कुत्सित 'डेरा'।
अब मानवता को कौन बचाए,
लाकर नूतन नया सवेरा।
 
कलुष विचार को करके मंदे,
मानवता अपना ले बंदे,
मिट जाएंगे सारे फंदे।
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