गुरुवार, 28 मार्च 2024
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कविता : ताज को एक सिर की तलाश!

कविता : ताज को एक सिर की तलाश! - poem on Current situation
एक ताज को उपयुक्त सिर की तलाश है।
 
सभी घाघ चुप्पी साधे हैं मौन।
डूबते जहाज का स्टीयरिंग थामे कौन।।
 
सब अपने ऊपर आई बला को टाल रहे।
अपने पाले से गेंद दूसरे के पाले में उछाल रहे।।
 
शायद सबको दिखने भी लगा कि
इसमें अंतरनिहित विनाश है।।1।।
 
खुशामद की दुकानों के शटर धड़ाधड़ गिर रहे।
निचले वफादार (बिन सरमाया) बदहवास से फिर रहे।।
 
फक्त सलाम से सलामती का वह अधिकार, अब मिलेगा कहां।
खुशामद से बरग़लाया जा सके, ऐसा परिवार अब मिलेगा कहां।।
 
सारी पुरानी वफ़ादारियां विघटन के आसपास हैं।।2।।
 
उत्तर के महारथियों की, एक अनकही मिलीभगत है।
दक्षिण भी कम नहीं है, वह हर पैंतरे में पारंगत है।।
 
इसीलिए उस बुजुर्ग पार्टी की, हर तरफ से दुर्गत है।
स्वहित से ऊपर उठकर सोच की, कहिए किसको फुर्सत है।।
 
राजनीति में सिद्धांत, वफादारी व समर्पण सब जुमले बकवास हैं।।
बेचारा जमीनी कार्यकर्ता ही बस दिल से व्यथित है, उदास है।।3।।
 
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