ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं गरमी की छुट्टियों को तगड़े आलस में जी आऊं भानुमति के पिटारे से निकलूं छोटी सी छोरी बन बाईस्कोप में मुंह ढांप अपना छुटपन देख आऊं!! आसमान में आंख टांग के कुछ पतंगें लूट लाऊं पेड़ों की फुनगी तक जाकर बादल छू के आऊं छुपन-छपाई खेलूं सखा संग रूठूं और मनाऊं मेरे दाम की बारी आए तो सब पर रौब जमाऊं ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!! लट्टू को रस्सी पे लपेटूं और दुनिया को घुमाऊं गिल्ली-डंडे से खिड़की के कांच फोड़ के आऊं रेलगाड़ी की पटरी से कुछ गुट्टे बीन के लाऊं गोल-गोल से कंचों में काल्पनिक संसार बसाऊं ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!! हाथ गुलेल लूं निशाना साधूं, पके आम टपकाऊं सितौलिये पर गेंद को मारूं, जोर-जोर चिल्लाऊं घोड़ा बादाम छाई के पीछे, सोटे से मार लगाऊं राजा-मंत्री, चोर-सिपाही सबको ये खेल खिलाऊं ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!! खो-खो में यूं चौकन्नी हो खुद को ही खो जाऊं सांप-सीढ़ी पे चढ़ी-उतरती जीतूं, कभी हार जाऊं बारिश का पानी गड्ढों में छपाक छलांग लगाऊं बरखा के बहते पानी में कागज की नाव चलाऊं ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!! रंग-बिरंगी तितली पकड़ूं, खुद तितली बन जाऊं साइकल के पुराने टायर संग जमके दौड़ लगाऊं चिड़िया जब उड़ जाए अंगुली से, भैंस भी उड़ाऊं लंगड़ी टांग से छपट-पटक के पलटी मार गिराऊं ऐ दिल जरा बचपन की गलियों से गुजर आऊं!!