हिन्दी कविता : आश्चर्य के बुरे दिन
रोशनी थी
कि रोशनी के बुरे दिन थे
रोशनी के दिन
रोशनी के इतने बुरे दिन थे
कि रोशनी देख पाना तक
मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था
फिर, मैं उन आंखों में उतरा
किसी आश्चर्य की तरह
वहां इतना घना अंधेरा था
कि आश्चर्य था
आश्चर्य के बुरे दिन थे
और आश्चर्य था