हिन्दी कविता : इस वीराने में
राजकुमार कुम्भज
इस विराने में वीरान-सी वीरानी है कोई
और ब्रह्मांड भर में ब्रह्मांड तक की
सनसनी से भी बड़ी कोई सनसनी
पसर गई है
शिशुओं के शव हैं झूला झूलते हुए
स्त्रियों से बलात्कार का उत्सव है
पौरूष की नपुंसकता है, जश्न भी
और वे चार जने अभागे
जो निकले हैं रोटी की तलाश में
तलाश में ही पाए गए मिट्टी का ढेर
मगर मिट्टी के ढेर से ही पैदा होती हैं
फसलें और चिंगारियां
ये तो बड़ा ही अजब-गजब तमाशा है
कि फसलें और चिंगारियां
इस वीरान में
इसी एक वीराने में रहता था कहीं
कोई एक कवि
जो मरीज नहीं था मधुमेह का
किंतु पर्याप्त परहेज पर ही रहता था
शकरकंद खाने से
इस वीराने में