सोमवार, 30 दिसंबर 2024
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किसान आंदोलन पर कविता : सरकारों सुनो

किसान आंदोलन पर कविता : सरकारों सुनो - Hindi Poem On Kisan Andolan
एक-एक किसान की हाय..!
उनकी पत्नियों और
बेटा-बेटियों की गालियां भी।
सरकारों सुनो...
 
तुमने नहीं मारा
दो या पांच किसानों को,
तुमने नहीं किया 
उनकी पत्नियों को बेवा
न किया उनके बच्चों को अनाथ..
 
तुमने मारा है समूचे भारत की
उस मेहनत को
जिससे धरती के सीने में
बोया जाता है अन्न का एक-एक दाना,
 
उस खून को जो बढ़ाता है
धरती की उर्वरता को,
उस पसीने को जो सींच कर
बड़ा करता है फसलें,
 
तब जाकर खा पाता है भारत 
और तुम भी सरकारों...।
पर तुम जो राजा 
समझते हो अपने आप को
 
तो सुनो, तुम्हारे सर्वसुविधा युक्त महलों में
नहीं उग जाता अनाज,
यूंही नहीं भर जाती
तुम्हारी तिजोरियां बोरों से
 
और नहीं बना देती तुम्हारी नीतियां
तुम्हारे लिए बैठे बिठाए रोटियां,
तुम तो यह भी नहीं जानते
 
सूर्य को तपाकर,
बादलों को पिघलाकर
और ठंड को झकझोर कर
पैदा होता है अनाज का एक-एक दाना।
 
पर आज जब तुमने 
किया है उसी को बेवा
उसी को अनाथ, मारा है उसकी
मेहनत को, खून को, पसीने को
तो निश्चित है
तुम भी भूखी मरोगी सरकारें...।