सोमवार, 28 अप्रैल 2025
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कविता : लिखते हैं एक नई किताब

sahitya poem
- राहुल प्रसाद
 
ये ख्वाहिशें, ये चाहतें, ये धड़कनें बेहिसाब,
चलो मिलकर लिखते हैं, एक नई किताब।
 
ये नया सवेरा, ये नया दिन, ये नई-नवेली रात,
चलो मिलकर करते हैं, फिर कोई नई रूमानी बात।
 
न कहना, न सुनना, सिर्फ तेरा यूं ही खामोश रहना,
चलो मिलकर करते हैं, फिर पुरानी शरारतों का हिसाब।
 
ये कहानी, ये किस्से, ये मुहब्बत की दास्तां,
चलो मिलकर देते हैं, फिर इसे एक नई जुबां।
 
न ढूंढो तुम वफा को, न चाहो कुछ वफा से,
चलो मिलकर देखते हैं, फिर बंद आंखों से नए ख्वाब।
 
ये मौसम, ये मस्तियां और ये फूलों की महक,
चलो मिलकर देते हैं, एक-दूसरे को नए गुलाब।
 
ये ख्वाहिशें, ये चाहतें, ये धड़कनें बेहिसाब,
चलो मिलकर लिखते हैं फिर से वही प्रेमभरी किताब।