नए साल का शोर है...
- गोविंद सेन
नए साल का शोर है, नई नहीं है बात।महज नाम ही बदलते, कब बदले हालात॥वही दिसंबर-जनवरी, वही फरवरी-मार्च।नहीं फेंकती रोशनी, बिगड़ गई है टार्च॥बड़ी-बड़ी है मछलियां, छोटे हैं तालाब।चुटकीभर है जिन्दगी, मुट्टीभर हैं ख्वाब॥खेतों में खटता रहा, होरी भूखे पेट।भैयाजी होते रहे, निस-दिन ओवर वेट॥हम धरती के पूत हैं, वे राजा के पूत।वो रेशम की डोरियां, हम हैं कच्चे सूत॥पैसा उनका ज्ञान है, पैसा उनका धर्म ।लज्जित होते ही नहीं, करके काले कर्म॥ऊंचाई का दंभ है, ऊंचाई से प्यार।हाथी भी लगता उसे, चींटी जैसा यार।महक रहे हैं आप तो, जैसे कोई फूल।कीचड़ अपनी जिन्दगी, हम पांवों की धूल॥खेती-बाड़ी, गाड़ियां, यहां-वहां दस प्लॉट।पांच साल में हो गए, भैयाजी के ठाट॥घरवाली भाती नहीं, परनारी की चाह।बेघर तू हो जाएगा, घर की कर परवाह॥मिटे नहीं हैं फासले, घटे नहीं हैं भेद।चिंता बढ़ती जा रही, बढ़े नाव में छेद॥