एम.एम.चन्द्रा
देश में चल रही अभिव्यक्ति की आजादी की डिबेट में “सोशल मीडिया इंश्योरेंस” कंपनी भी कूद पड़ी है। यह इंश्योरेंस सोशल मीडिया पर प्रत्येक व्यक्ति को बिना डरे, खुल कर लिखने के लिए प्रेरित करती है। यदि सवाल देश भक्ति और अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा हो, तो यह और भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि देश भक्ति बाजार की मंडी में पैदा होती है।
बाजार अच्छी तरह से जानता है, कि किसी भी समय किसी भी स्थान पर युद्ध होने जैसी संभावना से पॉलिसी बाजार के भाव और पालिसी बेचने वालों का सम्मान बढ़ जाता है। यदि युद्ध जैसा माहौल बनता है, उस स्थिति में तो कंपनियों का वारा न्यारा हो जाता है। यह डर और भय ही सभी पालिसी बाजार का आधार है। जो डर गया समझो, पालिसी में फंस गया। यही डर बहुत से धंधों को भी जन्म दाता है।
अब अधिकतर युद्ध सोशल मीडिया पर ही होते हैं। तलवार चलती है, तोपें आग उगलती है, कभी गप के गोले चल जाते हैं और कभी इतिहास परिवर्तन, हृदय परिवर्तन तो कभी धर्म परिवर्तन भी आसानी से हो जाता है।
चूंकि सोशल मीडिया पर सभी दोस्ताना दुश्मनाना होते हैं, और दुश्मनाना दोस्ती ही सबसे खतरनाक होती है। शब्दों के जाल से, शिल्प और शैली की तलवार से, रूपकों की दहल से हलाल करने का हुनर सब सीख लिए हैं। जाहिर है कि ऐसी कठिन स्थिति में लानत मलानत होती रहती। इस आहतपन ने ही इस नई उभरती व्यवस्था “सोशल मीडिया” को मुख्यधारा में पहुंचा दिया है।
कहते हैं न, जहां डर है वहीं मुनाफा है, जहां मुनाफा है, वहां लोग आहत होंगे ही। कभी शब्दों को लेकर, नाम को लेकर, काम को लेकर, यहां तक कि दाम को लेकर। हां, कभी-कभी पुरस्कार को लेकर भी आहत हो जाते, यहां जाति को लेकर, धर्म को लेकर, देश को लेकर भी आहत हो जाते हैं। जिस जगह मुनाफा कमाने की इतनी सुंदर उपजाऊ जमीन हो, वहां भला सोशल इंश्योरेंस पालिसी क्यों नहीं चलेगी। तुम्हारा लेखन सपाट है, चपात है, झकास है, ललाट है, लेखन के कपाट हैं, भविष्य विराट है, लोहा लाट है, भोलाघट है, दो तोले का बाट है, सोने वाली खाट है, लेखन के नाम पर बंदर बाट है। जाहिर है हर कोई भय में लिख रहा होगा।
अब डर की कोई बात नहीं “अभिव्यक्ति की आजादी” है, खुलकर एक दूसरे को सबसे बड़ा देशभक्त या गद्दार घोषित करो। अब इतने बड़े देश में छोटे-छोटे लोगों की छोटी-छोटी बातों से सोशल मीडिया जाति, धर्म समुदाय, भाषा, क्षेत्र, संस्कृति के नाम पर ज्यादा बवंडर मचाया जा सकता है। जहां इस तरह की राजनीति का व्यापार संभव हो वहां मुनाफे का होना लाजिमी है। अगर रिस्क कवर हो तो फिर बात ही निराली है, जैसे जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी जीवन बीमा चलता है, उसी प्रकार सोशल मीडिया पर लिखने वालों के लिए भी एक पालिसी तो बनती है जनाब।
वैसे तो अभिव्यक्ति की आजादी देने का काम संविधान ने दिया हुआ है, लेकिन आभासी दुनिया को यह मान्यता नहीं मिली थी। अब बाजार ने सबके दिलों में अपनी जगह बना ली है, जिसके दिलों में बाजार के खिलाफ नफरत है, उसके लिए भी जगह है। अब देखिए न, जो काम अभी तक कोई सरकारें नहीं कर सकी, वो काम एक ही झटके में इंश्योरेंस कंपनी कर देंगी - “अभिव्यक्ति की आजादी सुनिश्चित करना”। इस मौके पर गीत चतुर्वेदी की कविता के बोल याद आ रहे हैं -
“बोलने से पहले खूब सोचो, फिर भी बोल दिया तो भिड़ जाओ, बिंदास तलवारें टूट जाएंगी” और जब बीमा हो, तो यह काम बहुत ही आसानी से हो सकता है।
यह पालिसी किसी सरकार पार्टी, संगठन या व्यक्ति विशेष के लिए नहीं, जिस पर पर कोई आरोप लग सके। सोशल मीडिया इंश्योरेंस एक निरपेक्ष मुनाफा कमाने वाली पालिसी होगी। आप चाहे यह लिखे, आप चाहे वह लिखें, आप की मर्जी। आप चाहें सरकारी लिखें या गैर सरकारी लिखें, पक्ष में लिखें या विपक्ष में लिखें, दंगों के लिए लिखें या युद्ध के लिए, पंगों के लिए लिखें या लफंगों के लिए या दबंगों के लिए। अब आपसे कोई नहीं कह सकता, कि तुम्हारी जुबान से निकली बात और गधे की लात में कोई फर्क नहीं होता। फर्क करने का काम पालिसी बाजार डाट कॉम करेगा, क्योंकि पहले किसी बात का कोई मोल नहीं होता था। अब मोल-तोल के बोल नहीं चलेगा, अब चलेगा बोल, मोल फिर तोल, आखिर खाली सम्मान से तो किसी का पेट नहीं भरता। पालिसी बाजार ने बाजार ने हमें यह सहूलियत जरूर दे दी है कि आप अपनी हर बात की कीमत वसूल सकते हैं।
सोशल मीडिया पर बोलने से पहले न सोचने की जरूरत है न पढ़ने की. जब किसी के लिखे को पढ़ने की जरूरत ही नहीं तो सोचने की जरूरत किसे है. आज किसके पास इतना टाइम रखा है जो पहले सो बार सोचे. जितना समय सोचने में लगायेगे, उतने समय में तो सोशल मीडिया पर लिख देंगे. आज टाइम की कीमत, लिखने की कीमत है, सोचने की नहीं। सोचने का काम दूसरे लोग करे. समझदार व्यक्ति वही होता है जो लिख दे, रही बात लेने- देने की तो वह सोशल मीडिया इंश्योरेंस कंपनी कर ही देंगी।
अब छोटे होने या बाल धूप में सफेद करने की भी जरूरत नहीं, खुल के लिखो। अब ऐसी दुनिया कौन नहीं चाहता, जहां किसी के भी कुछ भी लिखने पर आप को इंश्योरेंस मिल जाए। लिखने वाले का भी फायदा और क्लेम करने वाले का भी फायदा और कंपनियों का दोनों से फायदा ही फायदा। सोशल मीडिया पर होने वाले तमाम घमासान का बीमा हो जाएगा, मतलब न हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा।
अब आप किसी के खिलाफ भी सर्जिकल मार्केटिंग कर सकते हैं। सब एक दूसरे से वसूली कर सकते है। छोटी-छोटी चीजों से लेकर बड़े-बड़े मामलों में आपके हर लिखे पर आपना क्लेम कर सकते हो। यह कविता, गजल या कोई लाइन मेरी है। उसने कराया है, उसने एडिट किया है, यदि यह सब साबित भी हो गया कि आपने किसी की फेसबुक या सोशल मीडिया से कुछ चुराया है, तो आपका बाल बांका भी नहीं होगा, सारा पेमेंट पालिसी करेगी। अर्थात अब आपको सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखने से पहले सौ बार सोचना नहीं पड़ेगा।
यह पालिसी उसी प्रकार है, जैसे लाइफ इंश्योरेंस, होम इंश्योरेंस, कार इंश्योरेंस की होती है। अब आप ट्विटर, फेसबुक जैसी सोशल मीडिया जैसी वेबसाइट्स लिखे हर शब्द का बस बीमा करवाना जरुरी है। फिर आपको किसी घटना, विषय या व्यक्ति के बारे में अपनी बात लिखते समय डरने की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत होकर भी पोस्ट या कमेंट करके खुला खेल फरुखाबादी कहला सकते हैं। यदि कोई आप पर मानहानि का केस करता है, तो बीमा कंपनी आपको कवर देगी। बीमा जरुरी है, जैसे जज्बात जरूरी हैं।