गुरुवार, 28 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. आलेख
  4. sonu sood
Written By
Last Updated : सोमवार, 1 जून 2020 (17:38 IST)

‘सोनू सूद’ ने साबित किया कि क्‍या होती है ‘अकेले आदमी’ की ‘इच्‍छाशक्‍ति’

‘सोनू सूद’ ने साबित किया कि क्‍या होती है ‘अकेले आदमी’ की ‘इच्‍छाशक्‍ति’ - sonu sood
एक पुरानी कहावत हिन्दुस्तान में बहुत इस्तेमाल की जाती है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। और जिंदगी की हकीकत यह कहती है कि बहुत सारे भाड़ अकेले चने के फोड़े हुए ही रहते हैं।

देश में किसी बड़े सामाजिक आंदोलन को देखें, कई किस्म के अंतरराष्ट्रीय मैडल देखें, या दिल्ली जैसे प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की परंपरागत सत्ता के बाद केजरीवाल जैसे नए नवेले नेता को देखें, बहुत से ऐसे अकेले लोग रहते हैं जो भाड़ फोड़ पाते हैं।

जिस मुम्बई में बार-बार मजदूरों की भीड़ रेलवे स्टेशनों पर लग रही थी, जिन्हें मार-मारकर भगाया जा रहा था, उसी मुम्बई में एक फिल्म अभिनेता सोनू सूद जाने कहां से आया, और बेबस मजदूरों की मदद पर उतारू हो गया। न महाराष्ट्र सरकार, और न यूपी-बिहार की सरकार जो कर पा रही थीं, वह इस अकेले आदमी ने कर दिखाया। और यह बात महज एक चेक काटकर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री राहत कोष में भेज देने जैसी नहीं थी।

सोनू सूद अपने तन, मन, और धन तीनों के साथ सड़कों पर मौजूद हैं, रात-दिन टेलीफोन और ट्विटर पर मौजूद हैं, और अपने साथियों के साथ मिलकर अपने जेब के पैसों से रात-दिन बसें करवाकर मजदूरों को उनके गांव रवाना कर रहे हैं। यह वक्त महज रूपए-पैसे की मदद का नहीं है, यह वक्त मजदूरों की हौसला अफजाई का भी है, कि उन्हें जिंदा रहने का हक है, उन्हें अपने गांव लौटने का हक है, और सैकड़ों मील पैदल चलते जान देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सोनू सूद अकेले ही हर मजदूर को बस की सीट दिलाने के लिए काफी है।

आज जब चारों तरफ सरकारों पर निकम्मेपन की तोहमतें लग रही हैं, तो फिल्म उद्योग का एक सफल अभिनेता झुलसाने वाली गर्मी में, कोरोना के खतरे से डरे बिना रात-दिन बसों के बीच, मजदूरों के बीच घूमते दिख रहा है, मजदूरों को बसों में चढ़ाने के बाद खुद भी उस बस में चढ़कर उन्हें लौटकर आने का न्यौता भी दे रहा है, और यह भरोसा भी दिला रहा है कि वे लौटेंगे तब फिर मुलाकात होगी। कहां तो इन मजदूरों को सरकारी हिकारत और पुलिस की लाठियां हासिल थीं, और कहां उन्हें कोई भाई और बहन कहने वाला मिला है, इतना मशहूर अभिनेता एक-एक संदेश और टेलीफोन कॉल का जवाब दे रहा है, और बिना सरकारी मदद के इतना बड़ा इंतजाम कर रहा है।

एक-दो और ऐसे अभिनेता हुए हैं, सलमान खान, और आमिर खान ने फंसे हुए मजदूरों के लिए राशन का इंतजाम किया है, अमिताभ बच्चन ने दस बसों का इंतजाम किया है, स्वरा भास्कर ने तेरह सौ से अधिक मजदूरों के लिए बस का इंतजाम किया है, लेकिन इनमें से अधिकतर के मुकाबले शायद कम कमाने वाले सोनू सूद ने मानो अपने पूरे बैंक खाते को दांव पर लगा दिया है, और हर मजदूर से वादा किया है कि उन्हें उनकी साइकिल या उनके सामान सहित उनके गांव तक भिजवाकर रहेंगे। एक दूसरी खबर यह है कि कल केरल के कोच्चि से 167 फंसे हुए मजदूरों को उनके गृहप्रदेश, ओडिशा हवाई जहाज से भिजवाने का काम सोनू सूद ने किया है।

यह सब उस वक्त हुआ है जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर यह ये तोहमतें लग चुकी हैं कि वे वहां ऐसी स्थितियां पैदा कर चुके हैं कि मजदूर दिल्ली छोड़कर जाएं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने मजदूरों को वापिस लेने से मना कर चुके थे, लेकिन उन्होंने तो शुरू में कोटा-कोचिंग से बिहारी छात्रों को वापिस लेने से भी मना किया था। मोदी सरकार लगातार इस बात को लेकर राज्यों से लड़ती रही कि मजदूर ट्रेनों का भाड़ा कौन दे। जब सरकार से परे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को यह घोषणा करनी पड़ी कि मजदूरों का किराया कांग्रेस पार्टी देगी।

ऐसे माहौल में बिना किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए, बिना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किसी घरोबे के, सोनू सूद ने जिस अंदाज में अकेले चलकर यह अभियान चलाया है, और चला रहे हैं, वह किसी एक व्यक्ति की इच्छाशक्ति से मिलने वाली कामयाबी की एक सबसे बड़ी मिसाल है। इसी मुम्बई शहर में, इसी फिल्म इंडस्ट्री में सोनू सूद से सौ-सौ गुना अधिक कमाए हुए सैकड़ों लोग होंगे, लेकिन एक-दो ऐसे रहे जिन्होंने प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को चेक दे दिए, एक-दो अभिनेता ऐसे रहे जिन्होंने मजदूरों को राशन भेजा, या कुछ के खाते में नगद रकम भी जमा कराई। लेकिन एक अलग ही अंदाज में सोनू सूद ने न सिर्फ खर्च किया, बल्कि मजदूरों को भाई कहकर, बहन कहकर, लौटने का वायदा लेकर, एक बहुत बड़ा हौसला भी दिया जिसमें वे रास्ते में बेमौत मरने के बजाय गर्व से बस में घर लौट रहे हैं, और बाकी पूरी जिंदगी के लिए उन्हें यह बात पीढिय़ों तक को बताने के लिए याद रहेगी कि एक फिल्मी सितारे ने उनकी घरवापिसी का इंतजाम किया था।

यह मिसाल देश के और कुछ लोगों को ऐसा या इससे बड़ा करने का हौसल न दे, तो वैसे सक्षम लोग सिर्फ धिक्कार के हकदार रहेंगे। देश में एक से बढ़कर एक संपन्न लोग हैं, और एक से बढ़कर एक ताकतवर लोग हैं जो एक राजनीतिक सभा के लिए हजारों बसों का जुगाड़ कर लेते हैं। ऐसा कोई भी दूसरा इंसान देश में सामने नहीं आया है जिसने आम मजदूरों के लिए ऐसा कुछ किया हो। अब कई लोगों को यह आशंका लग सकती है कि आगे चलकर सोनू सूद किसी राजनीतिक दल में जाकर मुम्बई से कहीं चुनाव तो नहीं लड़ेंगे?

ऐसी आशंकाओं के लिए आज वक्त नहीं है क्योंकि आज जब सड़क किनारे किसी धर्म के लोग खाना बांटते खड़े रहते हैं, तो किसी मजदूर को किसी धर्म से परहेज नहीं होता है। इसी तरह आज की जानलेवा मुसीबत के बीच इतना बड़ा मददगार कल अगर अपनी मर्जी से किसी राजनीतिक दल में भी चले जाता है तो भी आज का उसका योगदान न खत्म होता, न घटता। आज जब चारों तरफ नेताओं और सरकारों, अफसरों और देश के खरबपतियों से करोड़ों मजदूरों को निराशा ही निराशा मिली है, तब एक अकेला इंसान अगर उनमें उम्मीद जगा रहा है, तो देश के बाकी लोगों को अपनी क्षमता और अपने दायरे के तहत खुद को तौलना चाहिए कि वे क्या करने के लायक हैं, और क्या कर रहे हैं? (पॉल‍िट‍िक्‍स वाला डॉट कॉम से साभार)