भिया,अपने मालवा मे "बारिश" को बारिश नी केते है,बल्कि "पानी" आना केते हैं।
ये मौसम लपक गर्मी के बाद आता है इसके
वास्ते इसका महत्व भयानक बढ़ जाता है।
अपने याँ बारिश की जित्ती खबर मौसम विभाग से नी मिलती हैं उत्ति रमुच तो चौराए पे चाय और भजिये की दुकान से मिल जाती हैं।
ऐसे पड़ते पानी मे आम मालवी सबसे ज्यादा भजिये ने भुट्टे खाते है, और बापडे़ M.P.E.B.वाले सबसे ज्यादा गाली।
अपने याँ १० इंच से १/२ फिट के पानी को " घुटने तक" ही बोला जाता है।
अपने याँके वो होस्यार लोग ,जो साल भर रोज़ मोटर चल्लू करके कार धोते हैं, वोई लोगओन वाटर हार्वेस्टिंग कित्ता जरूरी है पे चर्चा, इसी टेम करते हैं। बारिश के टेम पेई मालवी लूंगाड़े मौसम को बेईमान बता के पीने-पाने का माहोल भट देनी से बनाते हैं।
एक पक्का मालवी पेली बारिश के ईतवार को यदि बड़ा पुल शिप्रा/कालियादेह पैलेस/त्रिवेणी/मांडू नी जाता तो उसको पाप पड़ता है। येई वो टेम है जब पूरी फेमिली जाम-गेट पे जमके सेल्फी खीच के आसपास- मौसम स्टेटस के साथ फेस्बुक पे फोटू और नये छोरा छोरी टिक टाक वीडियो डालेते हेंगे।
इसी मोसम मे ये निम्नलिखित डाईलाग सुने जाते हैं-
ये कीचड़ घान किन्ने किया,अभी पोछा लगाया है मैने।
काले बद्दल हो गिये, अब m.p.e.b.वाले १२ बजाएंगे..
पानी लपक गिरेगा पेलवान, मेरे बाऊ जी के गुमडे़ दुख रिये थे कल भोत...
बेसन हेगा कि नी घर मे...?
ऐं, ये तो कई नी है,मेरे याँ घुटने तक पानी भे रिया है।
गुप्ता साब के याँ देख तो लाइट है कि नी
भिया, मालवी मे बारिश के मजे पे जीत्ती बात करना है,करलो मुंडा दुख जायेगा, जगो कम पड़ जायेगी, पर बात खतम नी होएगी। तिरभिन्नाट मालवी